श्रीहरिकोटा. भारत ने गुरुवार को बड़ी कामयाबी हासिल कर ली। इसरो ने आईआरएनएसएस का आखिरी और 7th सैटेलाइट स्पेस में स्थापित कर दिया। इसके साथ ही भारत का अमेरिका के ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (जीपीएस) के मुकाबले अपना रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम (आरपीएस) बनाने का टास्क पूरा हो गया है। कारगिल वॉर के दौरान अमेरिका ने मदद देने से मना कर दिया था। इसरो साइंटिस्ट 17 साल से इस काम में लगे थे...
- भारत 1973 से ही अमेरिकी जीपीएस पर डिपेंड रहा है।
- कारगिल वॉर के वक्त घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों की पोजिशन बताने से अमेरिका ने मना कर दिया था। तब हमारी सेना को इसकी सबसे ज्यादा जरूरत थी।
- इसके बाद इसरो ने तय किया कि वह अपना रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम बनाएगा।
- इस कामयाबी के साथ ही अमेरिका और रूस के बाद भारत अब तीसरा देश बन गया है जिसके पास अपना नेविगेशन सिस्टम है।
1500 किमी तक की मिलेगी सटीक जानकारी
- आरपीएस के 6 सैटेलाइट पहले ही लाॅन्च किए जा चुके थे।
- इस सिस्टम से जुलाई के बाद देश के चारों तरफ 1500 किमी तक की सटीक जानकारी मिलनी शुरू हो जाएगी।
- हालांकि आम लोगों को इसका पूरा फायदा मिलने में एक से डेढ़ साल लग सकते हैं।
- इस काम में इसरो के बेंगलुरू स्थित ब्यालालू, जोधपुर, उदयपुर, भोपाल समेत कई सेंटर्स की अहम भूमिका होगी।
- भोपाल में इसके लिए तीन स्टेशन बनाए गए हैं।
ये होंगे भारत को फायदे
- अमेरिकीसिस्टम पर डिपेंडेंसी से निजात मिलेगी।
- सेना को अपनी नेविगेशन, पोजिशनिंग और जियो-मैपिंग की फैसिलिटी मिलेगी।
- नेचरल डिजास्टर में निगरानी में मदद मिलेगी।
- स्थानीय मोबाइल लोकेशन हासिल करेंगे।
- शिप्स, प्लेन, बस, रेल की सटीक जानकारी।
- विजुअल-वॉयस नेविगेशन से ड्राइवरों के लिए सुविधाजनक रास्ते की जानकारी मिलेगी।
क्या बोले थे मोदी?
- 'इस सर्विस को दुनिया नाविक नाम से जानेगी।अब हमारे रास्ते हम तय करेंगे। सार्क देशों ने कहा तो उन्हें भी ये सुविधा देंगे।'
ऐसे हुई लॉन्चिंग
- पीएसएलवी-सी33 से लॉन्च किया गया 1,425 किग्रा का सैटेलाइट>
- 20 मिनट में 497.8 किमी ऊंचाई पर स्थापित किया गया।
- इसके बनाने में 1420 करोड़ रु. लागत आई।
आरपीएस की फैसिलिटी
- इसरो की अहमदाबाद यूनिट ने 5.5 इंच लंबा आरपीएस रिसीवर बनाया है। - इसरो-एंट्रिक्स रिसीवर को उन कंपनियों को देगी जो भारत में इसका छोटा फॉर्मेट (चिप) बनाएंगे।
- फिर ये चिप मोबाइल कंपनियां मोबाइल सेट में लगाकर बेचेंगी। ताकि आप मोबाइल पर आरपीएस की सुविधा ले सकें।
पुराने जीपीएस यूजर क्या करेंगे?
- हमारे पास अभी अमेरिकी जीपीएस रिसीवर वाले मोबाइल हैं।
- हालांकि इसरो ऐसी तकनीक विकसित कर रहा है जिससे देश में रहते हुए मोबाइल पर आरपीएस और बाहर जाने पर जीपीएस की फैसिलिटी मिले। - अमेरिकी जीपीएस की सेवा अगले कुछ सालों तक चलती रहेगी, जब तक आरपीएस युक्त मोबाइल पूरे देश में न बंट जाएं। तब तक जीपीएस काम करता रहेगा।
जीपीएस का काम
- मोबाइल में जीपीएस रिसीवर होता है। जब हम लोकेशन ऑन करते हैं तो यह अमेरिका के 31 उपग्रहों से सीधे तौर पर कनेक्ट हो जाता हैं।
- सैटेलाइट को आपकी पोजिशन मिलती है और आपको उपग्रहों से मैप। अब यह काम हमारा रीजनल पोजिशनिंग सिस्टम (आरपीएस) करेगा।