COP27 क्लाइमेट समिट के लिए मिस्र में इकट्ठा हुए 200 देशों के बीच रविवार को ऐतिहासिक समझौता हुआ। इसमें अमीर देशों को क्लाइमेट चेंज का जिम्मेदार ठहराया गया है। 14 दिन चली बहस के बाद यह फैसला किया गया है। इसके तहत अमीर देश एक फंड बनाएंगे। इससे गरीब देशों को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए मुआवजा दिया जाएगा। इसे गरीब देशों की बड़ी जीत माना जा रहा है।
‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ की रिपोर्ट के मुताबिक- समिट में आखिरी वक्त तक फंड को लेकर तस्वीर साफ नहीं थी। कई अमीर देश दूसरे मुद्दों के बीच इसे दबाने की कोशिश कर रहे थे। भारत, ब्राजील समेत एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के कई देशों ने इस फंड को पास कराने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। गरीब औऱ विकासशील देशों ने मिलकर अमीर देशों पर दबाव बनाया। उन्होंने कहा, अगर इस बार फंड नहीं बनता तो इस समिट को नाकाम माना जाएगा। वहीं, जाम्बिया के पर्यावरण मंत्री कोलिन्स नोजोवू ने इस फंड को अफ्रीका के 1.3 बिलियन लोगों के लिए पॉजिटिव स्टेप बताया।
फंड को लेकर कमेटी बनेगी
134 देशों के दबाव के बाद बना फंड
COP27 क्लाइमेट समिट में सबसे पहले यूरोपीयन यूनियन ने मुआवजे के लिए फंड बनाने की हामी भरी। हालांकि यूनियन का मानना था कि इस फंड का फायदा सिर्फ उन देशों को हो जिनकी हालत खराब हो चुकी है। इसके बाद फंड बनाने को मंजूरी देने की सारा दारोमदार अमेरिका पर था, जो दुनिया का सबसे बड़ा पॉल्यूटर माना जाता है। शनिवार को अमेरिका ने भी इसके लिए अपनी मंजूरी दे दी।
चीन को मुआवजे का लाभ नहीं देना चाहता अमेरिका
200 देशों के बीच हुए समझौते के मुताबिक- कई विकासशील देशों को भी क्लाइमेट चेंज फंड के तहत सहायता मिलेगी। ऐसे में यूरोपीयन यूनिय़न औऱ अमेरिका की मांग है कि इस फंड से जिन देशों को फायदा मिलने वाल है, उनमें चीन को शामिल न किया जाए। उनका तर्क है कि चीन दूसरी सबसे बड़ी इकोनॉमी है। साथ ही उन देशों में भी शामिल है जो सबसे ज्यादा ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है। वहीं चीन ने आरोप लगाए हैं कि अमेरिका औऱ उसकी साथी देश भेदभाव कर रहे हैं।
2009 का वादा अधूरा
अमीर देशों ने 2009 में वादा किया था कि वो क्लाइमेट चेंज से हुए नुकसान का हर्जाना देंगे। इसके तहत 2020 तक विकसित देशों को विकासशील औऱ गरीब देशों को हर साल 100 बिलियन डॉलर देने थे। यह वादा 12 साल बाद भी अधूरा है।
COP27 समिट मिस्र में ही क्यों
जलवायु परिवर्तन के लिहाज से अफ्रीका सबसे संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, पूर्वी अफ्रीका में सूखे की वजह से 1.7 करोड़ लोग फूड सिक्योरिटी से जुड़े मामलों का सामना कर रहे हैं। ऐसे में किसी अफ्रीकी देश में क्लाइमेट चेंज समिट होने से क्लाइमेट चेंज के प्रभावों की तरफ दुनिया का ध्यान केंद्रित किया जा सकता है। ये 5वीं बार है जब अफ्रीका के किसी देश में जलवायु सम्मेलन हो रहा है।
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