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चर्चा में अमीरुल्लाह सालेह:एक नेता, जासूस और लड़ाका जिनके खुलासों पर मुशर्रफ चिढ़ गए थे, सालेह ने ही बताया था- ओसामा पाकिस्तान में है

2 वर्ष पहले
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अमरुल्लाह सालेह (फाइल)। - Dainik Bhaskar
अमरुल्लाह सालेह (फाइल)।
  • जन्म- अक्टूबर 1972 (वे ताजिक समुदाय से संबंध रखते हैं। बहुत कम उम्र में अनाथ हो गए थे।)
  • राजनीतिक पार्टी- बसेज-ए मिलिक

काबुल पर तालिबान के कब्जे और राष्ट्रपति अशरफ गनी के देश छोड़ देने के बाद अमीरुल्लाह सालेह ने खुद को कार्यवाहक राष्ट्रपति घोषित कर तालिबान को चुनौती दी है। अमीरुल्लाह शब्द का अर्थ है- ईश्वर की आज्ञा या अल्लाह का फरमान। नाम के अनुरूप अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमीरुल्लाह सालेह अवाम के लिए नई उम्मीद बनकर सामने आए हैं। वे तालिबान से मुकाबले के लिए फिर तैयार हैं। तालिबान के खिलाफ उनका संघर्ष लगभग तीन दशकों से जारी है।

सालेह का जन्म अक्टूबर 1972 में पंजशीर में ताजिक समुदाय में हुआ था। कम उम्र में अनाथ हो गए थे। सालेह 1990 के दशक के शुरुआती दिनों में सोवियत समर्थित अफगान सेना में भर्ती होने से बचने के लिए मुजाहिदीन बलों में शामिल हो गए थे। पाकिस्तान में उनका सैन्य प्रशिक्षण हुआ।

पंजशीर से तालिबान को दी चुनौती
वे लंबे समय तक नॉर्दन अलायंस, जिसे यूनाइटेड फ्रंट भी कहा जाता है, के साथ जुड़े रहे और तालिबान के विस्तार के खिलाफ उनकी जंग जारी रही। अब जब तालिबान ने अफगानिस्तान के 34 प्रांतों में से 33 पर कब्जा जमा लिया है, तो एक मात्र अविजित प्रांत पंजशीर घाटी से अमीरुल्लाह ने तालिबान को फिर ललकारा है।

उन्होंने 17 अगस्त को एक संदेश जारी कर कहा कि अफगानिस्तान के संविधान के मुताबिक अगर राष्ट्रपति गैर-हाजिर रहता है या फिर इस्तीफा दे देता है तो फिर उपराष्ट्रपति ही कार्यवाहक राष्ट्राध्यक्ष हो जाता है। उन्होंने कहा, "मैं अपने देश के लिए खड़ा हूं और युद्ध अभी खत्म नहीं हुआ है।"

अमीरुल्लाह के अफगानिस्तान में प्रभाव को इससे भी समझा जा सकता है कि तजाकिस्तान के दुशांबे में स्थित अफगानिस्तान दूतावास ने उनकी ही तस्वीर लगा ली है।

तालिबान मार दे तो दुख नहीं, मैंने भी उन्हें मारा है
अमीरुल्लाह सालेह हमेशा से तालिबान के निशाने पर रहे हैं। उन पर जानलेवा हमले होते रहते हैं। पिछला बड़ा हमला सितंबर 2020 में हुआ था, तब बम धमाके में उनके आसपास के करीब 10 लोग मारे गए थे, पर वे बच निकले। हालांकि सालेह हमेशा बेखौफ रहते हैं। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था- "मैं अपने परिवार और दोस्तों से कह चुका हूं कि अगर हमले में मैं मारा जाता हूं तो अफसोस मत करना, क्योंकि मैंने भी कई तालिबानियों को मारा है। मुझे इसका गर्व है।"

जासूस: जिसकी बात सुनकर परवेज मुशर्रफ बौखला गए थे
2001 में तालिबान ने अमेरिका में आतंकी हमले किए। तुरंत बाद अमेरिका ने अफगानिस्तान पर हमला किया। तब अमीरुल्लाह अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA के लिए एसेट बन गए। उन्हें अफगानिस्तान की इंटेलिजेंस एजेंसी का हेड बनाया गया। उन्हें जानकारी मिली थी कि ओसामा एबटाबाद के पास है।

2007-08 के करीब तत्कालीन पाक राष्ट्रपति मुशर्रफ और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति करजई की एक मुलाकात में अमीरुल्लाह ने जब यह बात कही तो मुशर्रफ चिढ़ गए। मुशर्रफ ने टेबल पर हाथ पटकते हुए कहा था- "तुम्हें क्या मैं बनाना रिपब्लिक का राष्ट्रपति लगता हूं।" करजई से मुशर्रफ ने कहा, "तुम इस जासूस को साथ क्यों लाए,जो मुझे इंटेलिजेंस का पाठ पढ़ा रहा है।"

नेता: तालिबान के खिलाफ अवाम को एकजुट किया था
अमीरुल्लाह सालेह ने खुफिया एजेंसी के हेड के पद से 6 जून, 2010 को एक आतंकी हमला होने के बाद इस्तीफा दे दिया था। राष्ट्रपति करजई, तालिबान से बात करने के हिमायती थे और सालेह ने इसका विरोध किया था। उनका कहना था कि तालिबान का बात करना एक ट्रैप है। 2010-11 में सालेह ने तालिबान के खिलाफ बड़ा नागरिक आंदोलन खड़ा कर दिया था।

20 हजार लोगों के साथ उन्होंने तालिबान के खिलाफ सबसे बड़ी रैली काबुल में की थी। उनके अफगानिस्तान ग्रीन ट्रेंड आंदोलन के साथ 50 हजार लोग जुड़े थे, इसमें आधे से ज्यादा छात्र थे। बाद में जब अशरफ गनी राष्ट्रपति बने तो सालेह गृह मंत्री बनाए गए। 2019 में वे देश के पहले उपराष्ट्रपति बने।

लड़ाका: लड़ाई फिर उसी मोड़ पर आई, जहां से शुरू हुई थी
अमीरुल्लाह की तालिबान से नफरत के पीछे उनका निजी अनुभव भी है। 1996 में तालिबान ने उनकी बहन का अपहरण कर लिया था, उन्हें खूब यातनाएं दी गईं। सालेह ने टाइम मैगजीन में लिखा था कि इस घटना ने उनके मन में तालिबान के खिलाफ गुस्सा भर दिया था। इसे वे कभी भूल नहीं सके।

तालिबान के खिलाफ सालेह का संघर्ष आज फिर उसी मोड़ पर आ गया है जहां से उन्होंने शुरू किया था। पजंशीर में अहमद मसूद के साथ मिलकर इस लड़ाई को आगे बढ़ा रहे हैं। मसूद, अहमद शाह मसूद के बेटे हैं, जिनके नेतृत्व में सालेह ने 90 के दशक में तालिबान के खिलाफ संघर्ष किया था।

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