ऑस्ट्रेलिया ने नीदरलैंड के साथ मिलकर साल 2014 में मलेशिया एयरलाइंस की उड़ान MH17 को मार गिराने के मामले में रूस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। हादसे में 298 लोग मारे गए थे, जिनमें से 38 ऑस्ट्रेलियाई नागरिक थे।
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दोनों देश इस मामले को अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन (ICAO) में ले गए हैं। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मारिसन और विदेश मंत्री मारिस पायने ने एक बयान में कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत रूस उस उड़ान को गिराने का जिम्मेदार था और ICAO में कार्रवाई, मारे जाने वालों के लिए न्याय की दिशा में एक कदम होगा।
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर कई देशों ने प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसके बाद ऑस्ट्रेलियाई और नीदरलैंड की सरकार ने रूस के खिलाफ सीधे कानूनी कार्रवाई करने का फैसला किया। मारिस पायने ने कहा कि रूस के खिलाफ ऑस्ट्रेलियाई और डच की कानूनी कार्यवाही सबूत मिलने के बाद शुरू की गई है। उन्होंने बताया- मिसाइल सिस्टम रूसी संघ के 53वें एंटी-एयरक्राफ्ट मिलिट्री ब्रिगेड की थी।
क्या हुआ था 2014 में
MH17 उड़ान 17 जुलाई, 2014 को नीदरलैंड्स के एम्सटर्डम से मलेशिया के कुआलालंपुर जा रही थी। यूक्रेन के ऊपर से गुजरने के दौरान विमान दुर्घटनाग्रस्त हो गया। जहां रूसी समर्थित अलगाववादियों और यूक्रेनी सेना के बीच लड़ाई चल रही थी। इस दौरान रूस ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था।
अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं का कहना है विमान पर रूसी मिसाइल से हमला किया गया था। रूस ने हमेशा इसमें शामिल होने से इनकार किया है और दुर्घटना के पीछे कई अन्य कारण बताए हैं लेकिन सबूत नहीं मिलने पर अंतरराष्ट्रीय जांचकर्ताओं ने इन कारणों को ठुकरा दिया है।
चार लोगों के खिलाफ आरोप
संयुक्त कार्रवाई ICAO के अनुच्छेद 84 के तहत शुरू की गई। मिसाइल दागने के लिए तीन रूसी व्यक्तियों और एक यूक्रेनी व्यक्ति के खिलाफ हत्या का मुकदमा चल रहा है, जिनमें उनको व्यक्तिगत तौर पर इसका जिम्मेदार ठहराए जाने की कोशिश की जा रही है। चारों की अभी तक गिरफ्तारी भी नहीं हो सकी है और उनमें से कोई नीदरलैंड की अदालत में हाजिर भी नहीं हुआ है।
रूस पर बातचीत का दबाव
रूस ने कहा है कि MH17 दुर्घटना मामले की जांच को लेकर रूस के खिलाफ नीदरलैंड (डच) की शिकायत निराधार है और इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए। इसके बाद रूस अक्टूबर 2020 में ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड के साथ इस पर बातचीत से पीछे हट गया था। अब रूस पर बातचीत करने के लिए कानूनी दबाव बनाया जा रहा है।
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