अडोबी, अल्फाबेट, आईबीएम, मैच ग्रुप (टिंडर की मालिकाना कंपनी) माइक्रोसॉफ्ट, ट्विटर और ओनलीफैंस (कंटेंट क्रिएटर्स को दिखाने वाली सब्सक्रिप्शन आधारित सर्विस) के सीईओ में क्या समानताएं हैं..? सभी 7 कंपनियों के बॉस भारतीय मूल के हैं। पश्चिमी कंपनियों में भारतीय उपमहाद्वीप की प्रतिभाओं की बड़ी संख्या को देखते हुए ये कोई हैरानी की बात नहीं है।
वैसे भी अमेरिका ने हाल के वर्षों में कुशल श्रमिकों के लिए दो तिहाई एच से ज्यादा एच-1 बी वीसा भारतीयों को दिए हैं। इन सभी बॉसेस में एक समानता और है कि ये सभी हिंदू हैं और इनमें से 4 ब्राह्मण हैं। परंपरागत रूप से पुरोहिताई और शिक्षा से जुड़ी रही इस जाति के पिरामिड का शिखर 25 हजार से ज्यादा उपवर्गों से मिलकर बना है। भारत की करीब 140 करोड़ की जनसंख्या में इनकी मौजूदगी 5 करोड़ है।
अन्य 3 सीईओ पारंपरिक रूप से कॉमर्स या लेखा से जुड़े काम करने वाली जातियों से हैं। इस बड़े पिरामिड का एक पतले से हिस्से में इस तबके का भी योगदान है। सबसे आश्चर्य की बात यह है कि भारतीय कंपनियों के बोर्डरूम में ब्राह्मणों का वर्चस्व नहीं है। इस जाति के लोग शिक्षा, विज्ञान और कानून जैसे क्षेत्रों की तुलना में बिजनेस में कम अग्रणी हैं। पिछले 15 साल में देश के सुप्रीम कोर्ट में एक चौथाई जज ब्राह्मण रहे हैं।
वहीं, साइंस में भारत को मिले चार नोबेल में से तीन ब्राह्मणों ने हासिल किए हैं। बल्कि, तमिल ब्राह्मणों के एक छोटे उपसमूह को इसका श्रेय दे सकते हैं। वहीं भारत के बिजनेसमैन बड़े पैमाने पर वैश्य या व्यापारी जातियों के पारंपरिक व्यापारिक समुदायों से आए हैं। फोर्ब्स की 2021 की भारत की सूची की शुरुआती 20 एंट्रीज को देखें तो 12 वैश्य हैं, जो देश की आबादी में 1% से भी कम हिस्सा रखते हैं।
इन अरबपतियों में 5 मारवाड़ी हैं। देश के कई शुरुआती अरबपति इसी समूह से हैं। शीर्ष 20 में 3 पारसी (सायरस पूनावाला भी) और एकमात्र मुस्लिम और देश के सबसे परोपकारी अजीम प्रेमजी हैं। सिर्फ एक शिव नाडर (तीसरे सबसे धनी) पिछड़े वर्ग से हैं। हालांकि, उनका दक्षिण भारतीय नाडर समाज एक सदी से प्रगति की ओर अग्रसर रहा है। इसने बहुत पहले ही अपने ताड़ से शराब बनाने के पारंपरिक काम से जुड़ाव खत्म कर दिया था।
प्रतिभाशाली ब्राह्मणों ने प्रवास की कोशिशें कीं, उन्हें सफलता भी मिली
विदेश के बिजनेस में ब्राह्मणों के श्रेष्ठ प्रदर्शन की एक बड़ी वजह यह है कि भारत में बिजनेस स्थापित नेटवर्क वाले लोगों के पक्ष में है, वहीं प्रतिभाशाली ब्राह्मणों ने प्रवास की कोशिशें की हैं। किताबों से उनके गहरे जुड़ाव से परीक्षा पास करना और विदेश में एंट्री आसान बना दी। देश के सकारात्मक माहौल ने उन्हें बाहर जाने के लिए प्रेरित किया। जब अमेरिकी उप राष्ट्रपति कमला हैरिस की मां कॉलेज में पढ़ाई करना चाहती थीं, तब निचली जातियों के लिए प्रवेश मुश्किल था। उन्होंने अमेरिका में स्कॉलरशिप ली। पीएचडी करने के बाद वे कैंसर शोधकर्ता बन गईं।
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