गलवान जैसा खतरा और बढ़ा:भारतीय सेना से झड़प का वीडियो मीटिंग में दिखाकर जिनपिंग बने हीरो, अब इसी बैठक में बनेंगे आजीवन राष्ट्रपति

बीजिंग/नई दिल्ली8 महीने पहले
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चीन की कम्युनिस्ट पार्टी यानी CCP की 20वीं कांग्रेस रविवार यानी 17 अक्टूबर को बीजिंग में शुरू हुई। यह मीटिंग 22 अक्टूबर तक चलेगी। द हिंदू और HT मीडिया की रिपोर्ट्स के मुताबिक इस मीटिंग में हुई चर्चा से ज्यादा जिस बात ने सबका ध्यान खींचा, वह था गलवान झड़प का वीडियो दिखाना। इस दौरान गलवान में लड़ने वाले कमांडर को भी बुलाया गया था। इसे जिनपिंग सरकार की उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया।

मीडिया रिपोर्ट्स में इसे भारत को लेकर जिनपिंग का एजेंडा बताया गया। भारत को खतरा इसलिए भी ज्यादा है, क्योंकि CCP की मीटिंग के बाद शी जिनपिंग का कार्यकाल बढ़ाने का ऐलान तय माना जा रहा है। वहां किसी भी राष्ट्रपति को अधिकतम दो कार्यकाल देने का नियम जिनपिंग पहले ही खत्म करा चुके हैं। इससे उनके जिंदगीभर राष्ट्रपति रहने का रास्ता साफ हो गया है। CCP मीटिंग के पूरे घटनाक्रम को यहां क्लिक कर पढ़ें...

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन में CCP की मीटिंग से पहले गलवान झड़प के इस वीडियो को जिनपिंग सरकार की उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चीन में CCP की मीटिंग से पहले गलवान झड़प के इस वीडियो को जिनपिंग सरकार की उपलब्धि के तौर पर दिखाया गया।

अब सिलसिलेवार तरीके से जानते हैं कि कैसे जिनपिंग को चीन में माओ और जियाओपिंग के समकक्ष खड़ा किया गया है। इन चार पॉइंट से समझिए कि कैसे चीन में उनकी लार्जर दैन लाइफ इमेज बनाई जा रही है...

1. जिनपिंग के खिलाफ बयान देने पर सजा
पिछले साल यानी 2021 में चाइना कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) का कॉनक्लेव हुआ था। इसमें ‘ऐतिहासिक संकल्प-पत्र’ जारी किया गया था। तमाम प्रस्तावों के अलावा इस मीटिंग की खास बात यह रही कि जिनपिंग के खिलाफ बयानबाजी को अपराध की कैटेगरी में डाल दिया गया। यानी जिनपिंग के खिलाफ बोलने पर सजा का प्रावधान है।

2. दो टर्म ही राष्ट्रपति रहने की कंडीशन खत्म
जिनपिंग 2012 में सत्ता में आए थे। जिनपिंग से पहले राष्ट्रपति रहे सभी नेता पांच साल के दो कार्यकाल या 68 साल की उम्र होने पर रिटायर होना होता था। 2018 में चीन ने राष्ट्रपति पद के लिए दो टर्म की बाध्यता खत्म कर दी थी। ऐसे में जिनपिंग पूरी उम्र के लिए राष्ट्रपति बने रह सकते हैं। जिनपिंग का दूसरा कार्यकाल 2023 में खत्म हो रहा है, लेकिन ये तय माना जा रहा है कि वे तीसरा कार्यकाल भी लेंगे।

3. चीन के सबसे ताकतवर नेता बने जिनपिंग
शी जिनपिंग 2012 में पहली बार चीन के राष्ट्रपति चुने गए थे। पहला टर्म खत्म होने के बाद CCP की बैठक में उन्हें दोबारा राष्ट्रपति चुन लिया गया। राष्ट्रपति के लिए दो कार्यकाल की सीमा खत्म होने के बाद जिनपिंग अब माओत्से तुंग के बाद चीन के सबसे शक्तिशाली नेता बन गए हैं।

4. जिनपिंग के विचार संविधान में शामिल किए
चाइना कम्युनिस्ट पार्टी यानी CCP कांग्रेस ने जिनपिंग के लिए अधिकतम दो बार राष्ट्रपति बनने की शर्त तो हटाई ही, उन्हें दूसरी बार पार्टी प्रमुख भी चुना गया। वहीं, CCP ने उनके विचारों को संविधान में शामिल करने का फैसला किया था।

जिनपिंग के आजीवन चीन का राष्ट्रपति बने रहना लगभग तय होने के बाद अब चार पॉइंट में यह जान लेते हैं कि जिनपिंग का राष्ट्रपति बने रहना भारत के लिए खतरा कैसे है...

1. भारत-चीन बॉर्डर पर टकराव बढ़ सकता है
भारत और चीन के बीच चार हजार किलोमीटर से ज्यादा लंबा बॉर्डर है। इसमें कई जगह पर विवाद है। डोकलाम और गलवान घाटी के विवाद भी इसी तरह के थे। जिनपिंग को आजीवन प्रेसिडेंट बने रहने की आजादी से असीमित ताकत मिल जाएगी। ऐसे में चीन बॉर्डर के साथ लाइन ऑफ कंट्रोल पर अपनी ताकत दिखा सकता है। इससे भारत की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

2. BRI और पाकिस्तान में कॉरिडोर को बढ़ावा
जिनपिंग के प्रेसिडेंट रहने के दौरान ही चीन का बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव यानी BRI प्रोजेक्ट शुरू हुआ था। इसके जरिए वन बेल्ट वन रोड के जरिए चीन दुनिया भर के देशों को जोड़ रहा है। भारत के पड़ोसी देशों में इस सड़क से चीनी सैन्य बलों की आवाजाही आसान हो जाएगी। वहीं, जिनपिंग की अगुआई में चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर को बढ़ावा मिलेगा, जिसका भारत विरोध करता रहा है।

3. भारत को तीन तरफ से घेरने की रणनीति
चीन के कर्ज तले दबकर श्रीलंका बदहाल हो चुका है। अब चीन उसका हंबनटोटा पोर्ट इस्तेमाल कर रहा है। हाल ही में चीन का जासूसी जहाज भी वहां पहुंचा था। इधर, पाकिस्तान को चीन लगातार सैन्य सहायता दे रहा है। इनमें आधुनिक हथियार भी शामिल हैं, जिनका सीधा टारगेट भारत ही है। वहीं, नेपाल में भी चीन BRI के जरिए अपना दखल बढ़ा रहा है। इससे भारत की तीन तरफ से घेराबंदी होने का खतरा बढ़ गया है।

4. इंडो-पेसिफिक और हिंद महासागर में दखल
हिंद महासागर में चीनी नौसेना का दखल तो है ही, साथ ही साउथ चाइना सी (दक्षिण चीन सागर) में उसका जापान, वियतनाम, फिलिपींस और मलेशिया से भी टकराव है। शेनकाकू आईलैंड्स को लेकर उसका जापान से पुराना टकराव है। चीन इन आईलैंड्स पर कब्जा करके वहां फाइटर जेट्स और मिसाइल तैनात करना चाहता है। इससे भारत की सुरक्षा को बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।

CCP कांग्रेस में शी जिनपिंग की तरफ से पेश बयान, जिसमें जरूरत पड़ने पर ताइवान में सेना का इस्तेमाल करने की बात कही गई है।
CCP कांग्रेस में शी जिनपिंग की तरफ से पेश बयान, जिसमें जरूरत पड़ने पर ताइवान में सेना का इस्तेमाल करने की बात कही गई है।

पिछले साल CCP कांग्रेस में जिनपिंग को हीरो दिखाया
चीन में 2021 में हुई CCP कांग्रेस के दौरान जिनपिंग के लिए खास तौर पर संकल्प पत्र लाया गया था। इसमें बतौर राष्ट्रपति शी जिनपिंग की उपलब्धियां गिनाई गई थीं, तो वहीं उन्हें भविष्य के लीडर के तौर पर भी प्रोजेक्ट किया गया था। CCP के 100 साल के इतिहास में इससे पहले केवल दो संकल्प पत्र लाए गए थे।

100 साल के इतिहास में केवल दो संकल्प-पत्र
जुलाई 1921 की बैठक में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) की नींव रखी गई थी। सौ सालों के इतिहास में चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी सिर्फ दो संकल्प-पत्र लेकर आई है। पहला 1945 में और दूसरा 1981 में। इन संकल्पों के जरिए माओत्से तुंग और देंग जियाओपिंग को शक्तियां बढ़ाने में मदद मिली थी।

CCP कांग्रेस के पहले दिन (17 अक्टूबर) को बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को ब्रीफ करते हुए चीनी अधिकारी।
CCP कांग्रेस के पहले दिन (17 अक्टूबर) को बुलाई प्रेस कॉन्फ्रेंस में मीडिया को ब्रीफ करते हुए चीनी अधिकारी।

पहले संकल्प-पत्र में पार्टी के संघर्षों पर बात
माओ के संकल्प-पत्र का नाम- ‘रिजोल्यूशन ऑन सर्टेन क्वेश्चन्स इन द हिस्ट्री ऑफ अवर पार्टी’ था। इसमें शंघाई नरसंहार से लेकर लॉन्ग मार्च तक के पार्टी के बीते दो दशकों के संघर्ष पर बात की गई थी। पार्टी काडर की वफादारी हासिल करने के लिए ऐसा किया गया था। इसके बाद माओ ने सितंबर 1976 में अपने मरने तक चीन पर शासन किया।

दूसरे संकल्प पत्र में माओ की नीतियों की आलोचना
माओ की मौत के बाद डेंग जियाओपिंग चीन के सुप्रीम लीडर बने। 1981 में वो दूसरा संकल्प-पत्र लेकर आए। इसमें पार्टी की स्थापना से लेकर उनके समय तक के इतिहास का जिक्र किया गया था। संकल्प-पत्र में जियाओपिंग ने माओ की नीतियों की आलोचना की थी और माओ की नीतियों में भारी फेरबदल किया था। उन्होंने इकोनॉमिक रिफॉर्म्स पर काफी जोर दिया था, जिससे चीन के बाजार बाकी दुनिया के लिए खुलने लगे थे।

तीसरे संकल्प-पत्र में उपलब्धियों पर जोर
जानकारों का मानना है कि तीसरे संकल्प-पत्र में इतिहास की आलोचना की बजाय उपलब्धियों पर जोर था। ऐसा इसलिए क्योंकि जब माओ संकल्प-पत्र लेकर आए थे, उस समय चीन सिविल वॉर और जापानी आक्रमण से जूझ रहा था। वहीं, जियाओपिंग के सामने एक अलग तरह का संकट था। हालांकि जिनपिंग के सामने ऐसा कोई संकट नहीं दिखता।