धीरे-धीरे ही सही, लेकिन पर्यावरण को लेकर दुनिया जागरूक हो रही है। अंतिम संस्कार तक के तरीके बदल रहे हैं। ब्रिटेन में ईसाई धर्म के अलग-अलग संप्रदाय अंतिम संस्कार को पर्यावरण अनुकूल बनाने के लिए हजारों साल बाद साथ आए हैं। वे अंतिम संस्कार के धार्मिक, व्यावहारिक और पारंपरिक नजरियों को ध्यान में रखकर ऐसे तरीकों पर विचार कर रहे हैं, जिससे कम प्रदूषण हो।
ब्रिटेन में चर्च ऑफ इंग्लैंड समेत प्रमुख ईसाई सम्प्रदाय के चर्चों ने सोमवार को आयोजित हुई आम सभा में मृत देह को जलाने या दफनाने की बजाय पानी में डिकंपोज करने या खाद बनाने पर आम राय बनाने की कोशिश की। साथ ही तमाम देशों में अंतिम संस्कारों की पर्यावरण अनुकूल विधियों के विकल्प भी तलाशे गए।
सभा में मौजूद आर्क बिशप डॉटचिन ने कहा- अंतिम संस्कार की नई विधियों पर हिचक जरूर है, लेकिन किसी तरह की गलतफहमी नहीं है। वे कहते हैं- रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता और केप टाउन के आर्कबिशप डैसमंड टूटू ने साल भर पहले ही अपने शरीर का एक्वामेशन कराया था। दुनियाभर में ईसाई धर्म के अनुयायी करीब 240 करोड़ हैं। यह दुनिया की आबादी का 30% है।
टेरामेशन से 30 दिन में पार्थिव शरीर से 1 घन मीटर मिट्टी बनती है
पार्थिव देह को मिट्टी बनाने की प्रक्रिया को टेरामेशन कहते हैं। इसमें देह को बक्से में रखा जाता है। शरीर में लगे पेसमेकर जैसे बाहरी इक्वीपमेंट्स निकाल दिए जाते हैं। लकड़ी के चिप्स और दूसरे जैव पदार्थ के साथ गर्म हवा अपघटन तेज कर देती है। 30 दिन में हडि्डयां-दांत तक मिट्टी में मिल जाते हैं। इससे एक घन मीटर मिट्टी बनती है।
एक्वामेशन के जरिए पानी में अंतिम संस्कार किया जाता है
एक्वामेशन, जल में अंतिम संस्कार की विधि को कहते हैं। इसमें पोटैशियम हाइड्रोऑक्साइड जैसे एलकेली के मिश्रण से मिले पानी में पार्थिव शरीर को 3 से 4 घंटे सिलेंडर में रखा जाता है। सिलेंडर दबाव के साथ-साथ पानी को 150 डिग्री सेल्सियस तक गर्म किया जाता है। इसके बाद सिर्फ हडि्डयां बचती हैं।
इन हडि्डयों को ओवन में राख बना दिया जाता है और कलश में रखकर परिवार वालों को सौंप देते हैं। इस पानी को सीवेज में मिला दिया जाता है। इसलिए पानी कंपनियों ने इसका विरोध किया, लेकिन पानी में कोई डीएनए नहीं मिला। इसके बाद इजाजत दे दी गई।
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