केन्या, ट्यूनीशिया और नाइजीरिया जैसे देशों के ज्यादातर लोग मानते हैं कि उन्हें जरूरत से ज्यादा बोलने की आजादी मिली है। डेनमार्क के थिंक टैंक ‘जस्टीशिया’ की रिपोर्ट में यह दावा किया गया है। यह रिपोर्ट 33 देशों के 50 हजार लोगों पर किए गए सर्वे के आधार पर तैयार की गई है। सर्वे इसी साल फरवरी में हुआ था।
रिपोर्ट के अनुसार शोधकर्ताओं ने लोगों से पूछा कि क्या राष्ट्रीय ध्वज के अपमान, अल्पसंख्यक समूहों या धार्मिक विश्वासों पर आपत्तिजनक टिप्पणी की अनुमति दी जाना चाहिए। इस पर केन्या, ट्यूनीशिया और नाइजीरिया के लोगों ने कहा कि अभिव्यक्ति की ज्यादा आजादी की जरूरत नहीं है। केन्या के सर्वे में सबसे ज्यादा 82% लोगों ने कहा कि वे अभिव्यक्ति की ज्यादा आजादी नहीं चाहते। सरकार को लोगों के ऐसे बयान रोकने में सक्षम होना चाहिए जिससे अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है।’
रिपोर्ट में कहा गया है कि ट्यूनीशिया और नाइजीरिया में पिछले एक दशक में इस्लामी ‘आंदोलनों’ ने जोर पकड़ा है। इसलिए बोलने की आजादी को लेकर लोग आशंकित हैं। पिछले दो दशकों में केन्या और नाइजीरिया में जातीय संघर्ष बढ़ा है। इन देशों के नागरिकों को इस बात का डर हो सकता है कि मुक्त भाषण से हिंसा बढ़ सकती है। इसलिए ये अभिव्यक्ति की ज्यादा आजादी का समर्थन नहीं कर रहे हैं।
जबकि केन्या, ट्यूनीशिया और नाइजीरिया में जापान या इजरायल जैसे ही अधिकार मिले हैं। लेकिन इन तीनों देशों के लोग बोलने की आजादी को उतना ही अस्वीकार करते हैं, जितना मिस्र या तुर्की के लोग। रिपोर्ट में जोर देकर कहा गया है कि मिस्र और तुर्की में कड़े प्रतिबंध हैं। विश्वास और संप्रदायवाद इसके बड़े कारण हो सकते हैं। हालांकि, इसे पूरी तरह साबित करने के लिए पर्याप्त डेटा नहीं है।
मुस्लिम देशों में सरकार की परवाह किए बिना लोग मुक्त भाषण का विरोध करते हैं
सर्वे में मुस्लिम-बहुल देशों के ज्यादातर लोगों ने कहा, “हम मुक्त भाषण का बहुत कम समर्थन करते हैं। खासकर, तब जब धर्म के बारे में आपत्तिजनक टिप्पणियों की बात आती है।’ सर्वे के मुताबिक मुस्लिम देशों में सरकार की परवाह किए बना मुक्त भाषणों का विरोध किया जाता है।
मिस्र, तुर्की और रूस जैसे अधिकारवादी शासन वाले देशों के लोगों ने कहा कि वे उन स्वतंत्रताओं का समर्थन नहीं करते, जिनका सरकार समर्थन नहीं करती। लोकतांत्रिक देश इंडोनेशिया में लोग बोलने की आजादी को लेकर ज्यादा उत्साही दिखे। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि अगर सुरक्षा खतरे में हो तो अमीर और गरीब दोनों देशों में लोग अक्सर नागरिक स्वतंत्रता का त्याग कर देते हैं।
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