रूस-यूक्रेन जंग लंबी खिंचती जा रहा है। इसकी कीमत सिर्फ ये दो देश ही नहीं, बल्कि दुनिया के लगभग सभी देश चुका रहे हैं। खासतौर पर उभरती अर्थव्यवस्था वाले देशों की सरकारों को महंगाई से परेशान जनता को ईंधन मुहैया कराने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। भारत भी इससे प्रभावित हुआ है।
प्राकृतिक गैस का वितरण करने वाली कंपनी गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (GAIL) उपभोक्ताओं को पर्याप्त लिक्विड नेचुरल गैस (LNG) उपलब्ध करा पाने में विफल रही है। उसे पेट्रोकेमिकल प्लांट और फर्टिलाइजर कंपनियों को आपूर्ति रोकने पर मजबूर होना पड़ा है। बीते दो वर्षों में LNG की कीमतों में 1,300% इजाफा हो चुका है।
गरीब देशों की मुश्किलें बढ़ीं
रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद, यानी इस साल फरवरी से LNG की कीमतें 150% बढ़ चुकी हैं। इसके बावजूद दुनिया के अमीर देश मनमाने तरीके से ईंधन की खपत कर रहे हैं। दूसरी तरफ गरीब देशों में जनता को ईंधन मुहैया करा पाना मुश्किल हो रहा है। पाकिस्तान में ब्लैकआउट की स्थिति बन रही है, बांग्लादेश में बिजली बचाने के लिए रात 8 बजे से बाजार बंद करना मजबूरी है। उधर मैक्सिको में जनता को बढ़ते बिजली बिल से राहत दिलाने के लिए सरकार को सब्सिडी बढ़ानी पड़ी है।
विकासशील देशों के एनर्जी इम्पोर्ट बिल में तेज बढ़ोतरी
एनर्जी ट्रेडर्स के अनुसार भारत और पाकिस्तान के लिए तय गैस की सप्लाई यूरोप जा रही है। यूरोप के देश ज्यादा कीमत देकर LNG खरीद रहे हैं। नतीजतन, विकसित देशों का एनर्जी इम्पोर्ट बिल उनकी GDP के 2-4% के बराबर है, लेकिन विकासशील देशों के लिए यह GDP के 25% से भी ऊपर निकल गया है। करेंसी में गिरावट के कारण स्थिति और भयावह बन रही है। ह्यूस्टन यूनिवर्सिटी की असिस्टेंट प्रोफेसर सुजन कसमार के मुताबिक, ऊर्जा संकट दुनियाभर में नागरिक अशांति की वजह बन रहा है।
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