फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों संसदीय चुनाव में बड़ा झटका लगा है। 2 महीने पहले ही राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल करने वाले मैक्रों ने नेशनल असेंबली में बहुमत खो दिया है। अप्रैल में मैक्रों के पास नेशनल असेंबली में 300 से ज्यादा सीटें थीं, जो अब घटकर 245 रह गई हैं। फ्रांस की नेशनल असेंबली में बहुमत के लिए 289 सीटों की जरूरत होती है।
वहीं, दक्षिण पंथी नेता मरीन ली पेन की नेशनल रैली पार्टी और लेफ्ट पार्टियों के गठबंधन के हिस्से बड़ी कामयाबी आई है। ली पेन की पार्टी ने 8 सीटों की बढ़त के साथ अपने संख्याबल को 89 पहुंचा दिया है। दूसरी तरफ NUPES गठबंधन के तले एक साथ चुनाव लड़ने वाली लेफ्ट पार्टियों को 131 सीटें मिली हैं।
हालात हैरान करने वाले
इन चुनाव परिणामों के फ्रांस की राजनीति में उथल पुथल मच गई है। प्रधानमंत्री एलिजाबेथ बोर्न का कहना है कि हालात हैरान करने वाले हैं। आधुनिक फ्रांस ने कभी इस तरह की नेशनल असेंबली नहीं देखी थी। हमारे देश के लिए यह जोखिम भरी स्थिति है।
नेशनल रैली पार्टी के प्रवक्ता लॉर लवलेट का कहना है कि नेशनल असेंबली अब फ्रांसीसी मतदाताओं के विचारों को बेहतर ढंग से दर्शाती है और उनकी पार्टी "रचनात्मक विपक्ष" में शामिल होगी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि मैक्रों के लिए आने वाले 5 साल समझौते भरे रहेंगे।
आधे से ज्यादा मतदाताओं ने वोटिंग नहीं की
इस बार के चुनाव में सिर्फ 46.23% लोगों ने मतदान किया, यानी की आधे भी ज्यादा मतदाता वोटिंग दूर रहे। वहीं, मैक्रों की सरकार में मंत्री रही ब्रिगिट बौर्गुइग्नन, एमेली डी मोंटचलिन और विधानसभा के अध्यक्ष रिचर्ड फेरैंड को हार का सामना करना पड़ा है।
क्यों अहम हैं फ्रांस के चुनाव?
6 करोड़ 70 लाख की आबादी वाला फ्रांस दुनिया की सातवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है। टूरिज्म और लाइफ स्टाइल एसेसिरीज के लिए दुनिया भर में मशहूर फ्रांस तीसरी सबसे बड़ी न्यूक्लियर पावर भी है। यूरोपियन यूनियन (EU) के फाउंडर मेंबर्स होने के साथ वो संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) के 5 परमानेंट मेंबर्स में से एक है।
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