अमेरिका में जाति आधारित भेदभाव एक कड़वी सच्चाई:जो लोग इस भेदभाव पर कानून का विरोध कर रहे हैं, वे दक्षिणपंथी हैं

वाॅशिंगटन6 दिन पहलेलेखक: रोहित शर्मा
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यह तस्वीर क्षमा सावंत की है, जो सिएटल काउंसिल की सदस्य हैं। - Dainik Bhaskar
यह तस्वीर क्षमा सावंत की है, जो सिएटल काउंसिल की सदस्य हैं।

अमेरिका के सिएटल में पहली बार जाति भेदभाव के खिलाफ कार्रवाई के लिए कानून बना है। इसे बनाया और प्रस्तावित किया उच्च जाति की हिंदू और सिएटल काउंसिल की एकमात्र भारतीय-अमेरिकी सदस्य क्षमा सावंत ने। उनका कहना है कि अमेरिका में जातिगत भेदभाव कड़वी सच्चाई है। भास्कर ने क्षमा सावंत से इस मुद्दे पर बातचीत की है...

सवाल: अमेरिका में खासकर सिएटल में आपने इस कानून की जरूरत क्याें महसूस की?
जवाब:
हमारे पास आंकड़ाें पर आधारित विश्लेषण है कि पूरे अमेरिका में जाति भेदभाव बड़ी समस्या है। सैकड़ाें कामगाराें के बयान हैं जिन्हाेंने इसे महसूस किया है। कार्नेगी एंडाेमेंट की स्टडी है। सिएटल बड़ी-बड़ी टेक कंपनियाें का केंद्र है जहां बड़ी संख्या में दक्षिण एशियाई हैं।

सवाल: कानून को 1965 के नागरिक अधिकार कानून का उल्लंघन बताया जा रहा है।
जवाब: हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन और हिंदूज ऑफ नाॅर्थ अमेरिका जैसे संगठन ऐसी बात कर रहे हैं। ये दक्षिणपंथी संगठन हैं। यदि वास्तव में वे भेदभाव का विराेध करते हैं ताे जातिगत भेदभाव कानून का विराेध क्याें कर रहे हैं?

सवाल: कानून के दुरुपयाेग की आशंका जाहिर की जा रही है कि इससे कंपनियां डर के कारण दक्षिण एशियाई लाेगाें काे नाैकरी देना बंद कर सकती हैं।
जवाब: यह सब कल्पनाएं हैं और इनमें कुछ भी वास्तविकता नहीं है। कानून तभी इस्तेमाल हाेगा जब दलित जाति का व्यक्ति उच्च जाति के किसी व्यक्ति से भेदभाव का शिकार हाेगा। यह समझना हाेगा कि सिएटल में पहले से धार्मिक या राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव पर कानूनन राेक है। हमने कानून में केवल जाति का एक और पहलू जाेड़ा है।

क्षमा सावंत का कहना है कि कानून तभी इस्तेमाल हाेगा जब दलित जाति का व्यक्ति उच्च जाति के किसी व्यक्ति से भेदभाव का शिकार हाेगा।
क्षमा सावंत का कहना है कि कानून तभी इस्तेमाल हाेगा जब दलित जाति का व्यक्ति उच्च जाति के किसी व्यक्ति से भेदभाव का शिकार हाेगा।

सवाल: सिएटल सिटी काउंसिल की सारा नेल्सन का कहना है कि जाति भेदभाव अमेरिका में नहीं है। अमेरिका में इस तरह के कानून की जरूरत नहीं है।
जवाब: हमें दक्षिणपंथियाें से इस तरह के प्रगतिवादी कदम के विराेध की पहले से उम्मीद थी। बिल 6-1 से पास हुआ और विराेध में एक वाेट नेल्सन का ही था। वह अमीराें और काराेबारियाें की हिमायती रही हैं। कार्नेगी एंडाेमेंट ने दाे विधियाें से स्टडी की है और माना है कि जाति भेदभाव हमारे समाज में है।

सवाल: क्या अब डेमाेक्रेटिक पार्टी इस कानून काे दूसरे शहराें में भी लागू करने कीे नीति अपनाएगी?
जवाब: हमें पूरी दुनिया के साथ भारत से इसके लिए जाेरदार समर्थन मिला है। इसने हजाराें दक्षिण एशियाई वर्कर्स का ध्यान आकर्षित किया है। सिएटल से हमें एकजुट हाेकर आंदाेलन करने की सीख लेनी चाहिए। डेमाेक्रेटिक पार्टी हमारे साथ नहीं है। हमें इसके लिए अपनी दम पर स्वतंत्र आंदाेलन खड़ा करना हाेगा।