समुद्र में चीन की दादागीरी खत्म करने के लिए दुनिया एकजुट होने लगी है। दक्षिण चीन सागर के बाद अब हिंद और प्रशांत क्षेत्र में चीन को जवाब की स्ट्रैटजी पर तेजी से काम हो रहा है। इसके तहत भारत, फ्रांस और जर्मनी ने पिछले साल हाथ मिलाया था। अब जर्मनी का लेटेस्ट वॉरशिप बेयर्न 21 जनवरी को मुंबई पहुंच रहा है। इसके बाद फ्रांस भी अपना वॉरशिप भारत भेजने वाला है। कुल मिलाकर यह चीन को साफ मैसेज है कि समुद्र में एकतरफा दबदबा कायम करने की उसकी चाल कामयाब नहीं होने दी जाएगी।
इंटरनेशनल रूल्स ही चलेंगे
‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल अमेरिका के बाद जर्मनी और फ्रांस ने भी साफ कर दिया था कि हिंद-प्रशांत हो या साउथ चाइना सी, यहां इंटरनेशनल रूल्स के तहत ही ट्रेड और बाकी ऑपरेशन्स होंगे।
चीन पर कैसे लगाम कसी जा रही है, इसकी एक मिसाल जर्मनी और फ्रांस की रणनीति है। 20 साल में ऐसा पहली बार हुआ, जब जर्मनी ने चीन की परवाह न करते हुए साउथ चाइना सी में यही बेयर्न वॉरशिप भेजा। फ्रांस ने भी ऐलान कर दिया है कि वो भी जर्मनी की राह पर ही चलेगा।
बेयर्न का आना अहम क्यों?
भारत में एक बार फिर कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक, बेयर्न जब मुंबई में होगा, तब हालात के हिसाब से फैसला लिया जाएगा। मुमकिन है कि लोग इसे वर्चुअली देख सकें। पिछले साल अगस्त में भी जर्मनी ने इसे हिंद-प्रशांत में पेट्रोलिंग के लिए भेजा था। सितंबर में जब यह चीन के शंघाई पोर्ट पर पहुंचा तो चीन ने इसे वहां रुकने की मंजूरी ही नहीं दी।
इस मामले में एक खास बात यह है कि चीन और जर्मनी के बीच मजबूत ट्रेड रिलेशन हैं, लेकिन वो फिर भी समुद्र में चीन के दबदबे को चैलेंज कर रहा है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि यूरोप के दो ताकतवर देश फ्रांस और जर्मनी सी-ट्रेड के मामलों में चीन की दादागीरी नहीं चलने देंगे।
जर्मनी की दो टूक
बेयर्न पिछले महीने सिंगापुर में था। चीन इससे काफी नाराज था। तब जर्मनी के नेवी चीफ वाइस एडमिरल एचिन कोबैक ने कहा था- यह चीन को साफ मैसेज है कि समुद्र में गैरकानूनी और दबदबे की किसी साजिश को कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। चीन के दावे नहीं माने जाएंगे। बेयर्न का यहां आना सिर्फ झलक है। हालांकि अब तक हमने ताइवान की समुद्री सीमा में एंट्री नहीं की है।
जर्मनी सरकार ने एक बयान में कहा था- हिंद और प्रशांत महासागर में कारोबार की सप्लाई चेन को खराब करने की कोशिश की जा रही है। इसके गंभीर असर जर्मनी और यूरोप पर भी होंगे।
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