जर्मनी में अपनी बेटी की कस्टडी की लड़ाई लड़ रहे भारतीय दंपती 9 मार्च को मुंबई पहुंचे। यहां वे अधिकारियों से मिलकर कस्टडी के केस में तेजी लाने की बात करेंगे। गुजरात मूल के इस भारतीय दंपती से डेढ़ साल पहले उनकी बेटी अरिहा की कस्टडी ले ली गई थी। जर्मनी की चाइल्ड सर्विसेज को उन पर यौन शोषण का शक था।
मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान मां ने बताया- सितंबर 2021 में अरिहा को खेलते हुए प्राइवेट पार्ट पर चोट लग गई थी। तब वो सिर्फ 7 महीने की थी। हम उसे लेकर अस्पताल पहुंचे तो डॉक्टर ने बताया कि बच्ची बिल्कुल ठीक है। इसके बाद जब हम फॉलो-अप के लिए गए तो डॉक्टर ने चाइल्ड सर्विसेज को बुलाकर बच्ची उन्हें सौंप दी। हम पर उसके साथ यौन शोषण करने का शक किया गया।
फरवरी 2022 में बंद हो चुका है यौन शोषण का केस
अरिहा की मां ने कहा- केस दायर होने के बाद हमने अपने DNA सैंपल भी दिए। पुलिस की जांच और मेडिकल रिपोर्ट में ये साबित हो गया कि हमने उसका यौन शोषण नहीं किया है। इसके बाद फरवरी 2022 में ये केस बंद भी हो गया लेकिन फिर भी हमें बेटी की कस्टडी नहीं मिली। उसके पिता ने बताया कि यौन शोषण का केस खत्म होने के बाद जर्मन चाइल्ड सर्विसेज ने हमें कस्टडी मिलने के खिलाफ केस लगा दिया। इस पर कोर्ट ने हमें एक पेरेंट-एबिलिटी रिपोर्ट बनवाने को कहा।
कस्टडी को लेकर बच्ची खुद फैसला करेगी
अरिहा के पेरेंट्स ने एक साल बाद 150 पेज की रिपोर्ट कोर्ट को सौंपी। माता-पिता से 12 घंटे बातचीत के बाद तैयार की गई इस रिपोर्ट में साइकोलॉजिस्ट ने कहा- बच्चे और माता-पिता के बीच का रिश्ता मजबूत है, लेकिन उन्हें बच्ची को पालना नहीं आता है। इसके लिए इन्हें अरिहा के साथ एक फैमिली हाउस में रखना चाहिए। जब वो 3-6 साल की हो जाएगी तब खुद तय करेगी कि उसे अपने पेरेंट्स के साथ रहना है या फॉस्टर केयर में।
महीने में सिर्फ 2 बार बच्ची से मिलते हैं पेरेंट्स
अरिहा की मां ने बताया कि उन्हें महीने में एक बार ही अपनी बच्ची से मिलने दिया जाता था, इसे लेकर वो कोर्ट में भी गए। सितंबर 2022 में उन्हें अरिहा से महीने में 2 बार मिलने की इजाजत मिल गई, लेकिन चाइल्ड केयर के लोग आदेश का पालन नहीं करते थे। दिसंबर 2022 में भारत सरकार के दखल के बाद उन्होंने आदेश का पालन करना शुरू किया।
PM मोदी-जयशंकर से मदद की गुहार
अरिहा के माता-पिता ने प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मदद की गुहार लगाई है। उसकी मां ने कहा- हम अपनी बच्ची को भारत वापस लाना चाहते हैं। वो अपने रीति-रिवाजों से दूर हो रही है। हमने उसे भारत ले जाने की भी मांग की थी लेकिन कोर्ट ने कहा कि अरिहा को कोई भी भारतीय भाषा नहीं आती है जिससे उसे दिक्कत हो सकती है। हमने उसे भाषा सिखाने की भी बात कही लेकिन हमारी बात नहीं सुनी गई।
जर्मन विदेश मंत्री बोलीं- बच्ची की भलाई प्राथमिकता
बच्ची के माता-पिता करीब 1 साल से भारत के विदेश मंत्रालय से बात कर रहे हैं। उन्होंने मामले में हस्तक्षेप करने की बात भी कही थी। जर्मनी के राजदूत फिलिप एकरमैन ने दिसंबर 2022 में कहा था कि वे इस मुद्दे की गंभीरता से वाकिफ हैं। जर्मनी की विदेश मंत्री अन्नालेना बेयरबॉक ने कहा था कि बच्चे की भलाई प्राथमिकता है। एजेंसी बच्चे को तभी अपनी हिरासत में लेती है, जब बच्चा अपने घर में सुरक्षित नहीं है। फिलहाल मामला कोर्ट में लंबित है। फैसले के बाद ही इस पर कुछ कहा जा सकता है।
अरिहा के पिता वर्क वीजा पर बर्लिन गए थे और एक सॉफ्टवेयर कंपनी के लिए काम कर रहे थे। सितंबर 2021 में केस दर्ज होने के बाद उन्हें जॉब से निकाल दिया गया। दंपती के मुताबिक उन पर अब तक 30-40 लाख रुपए का कर्ज भी चढ़ चुका है।
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