पाकिस्तान और चीन के रिश्तों में दूरियां बढ़ती जा रही हैं। चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) के खिलाफ बलूचिस्तान में 19 दिन से जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। आतंकी हमलों और स्थानीय लोगों के विरोध के चलते CPEC का काम करीब डेढ़ साल से बंद है। चीन ने करीब एक साल से CPEC के लिए किसी तरह के फंड्स भी जारी नहीं किए हैं।
अब बलूचिस्तान में कट्टरपंथियों के विरोध के चलते चीन की बीयर और वाइन फैक्ट्रीज को बंद कर दिया गया है। इतना ही नहीं इनकी तमाम वाइन शॉप्स, यानी शराब की दुकानें भी बंद कर दी गई हैं। इससे चीन का नाराज होना तय माना जा सकता है। हालांकि, पाकिस्तान की इमरान खान सरकार ने अब तक इस बारे में आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं कहा है। आइए इस मुद्दे को समझते हैं।
पहले माजरा समझिए
2015 में जब CPEC ने रफ्तार पकड़ी तो चीन के हजारों कर्मचारी पाकिस्तान आए। चीन और पाकिस्तान की संस्कृति में जमीन-आसमान का फर्क है। पाकिस्तान में शराब मिलती तो है, लेकिन इसके लिए होटलों और दुकानों को खास परमिट जारी किए जाते हैं। जब हजारों चीनी पाकिस्तान के अलग-अलग हिस्सों में पहुंचे तो इन्हें शराब की जरूरत महसूस हुई। इसके लिए चीनी कंपनी हुई (Hui Coastal Brewery and Distillery Limited) ने 2017 में लाइसेंस के लिए अप्लाई किया। एक साल बाद यह मिल गया।
सरकारी दावा तो यह है कि प्रोडक्शन इसी साल मार्च में शुरू हुआ, लेकिन पाकिस्तानी मीडिया कहता है कि बलूचिस्तान में प्रोडक्शन 2019 में ही शुरू हो गया था। पिछले महीने जब CPEC के खिलाफ बलूचिस्तान के ग्वादर समेत अलग-अलग शहरों में विरोध प्रदर्शन शुरू हुए तो कट्टरपंथी पार्टियां भी इसमें शामिल हो गईं और उनके दबाव में बीयर-वाइन फैक्ट्री और दुकानें कथित तौर पर बंद करनी पड़ीं।
चीन के खिलाफ नफरत
पाकिस्तान के पत्रकार कमर चीमा के मुताबिक- मुल्क के हर बड़े शहर में शराब मिल जाती है। बलूचिस्तान में अगर विरोध हो रहा है तो इसकी वजह सियासी ज्यादा है। यहां के स्थानीय लोगों में चीन के खिलाफ शुरू से नफरत है। उन्हें लगता है कि चीन न सिर्फ उनकी रोजी-रोटी छीन रहा है, बल्कि कल्चर भी तबाह कर रहा है। उसने यहां शराब की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियां और दुकानें खोल दीं। ये शराब पाकिस्तान के हर हिस्से में भेजी जाती और चीनी नागरिकों के बहाने स्थानीय लोग भी इसे खरीदते हैं।
कट्टरपंथियों का दबाव
CPEC के खिलाफ बलूचिस्तान और खासतौर से ग्वादर में जो आंदोलन चल रहा है, उसे गुरुवार को 19 दिन हो गए। हर रोज हजारों लोग चीन के खिलाफ और अपनी मांगों के समर्थन में सड़कों पर उतरते हैं। इनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं। इस आंदोलन का फायदा जमात-ए-इस्लामी और जमीयत-ए- इस्लाम जैसी कट्टरपंथी पार्टियां भी उठा रही हैं। जमात-ए-इस्लामी के नेता मौलाना हिदायत-उर-रहमान ने शराब फैक्ट्रियों और दुकानें बंद करने की मांग की। इमरान खान सरकार दबाव में आ गई और अब खबर है कि फिलहाल, ये दुकानें और फैक्ट्रीज बंद कर दी गई हैं।
शराब पर टैक्स नहीं
चीमा के मुताबिक- पाकिस्तान में आकर चीनियों ने शराब बनाई भी और बेची भी, लेकिन इमरान सरकार ने इस पर कोई टैक्स नहीं लगाया। अगर टैक्स लगाया जाता तो शायद इससे दिवालिया होने की कगार पर खड़े पाकिस्तान को कुछ राहत ही मिल जाती। दूसरे शब्दों में कहें तो एक्साइज ड्यूटी या टैक्स के जरिए इमरान खान कौमी खजाने में कुछ तो इजाफा कर ही सकते थे। हालांकि, ऐसा नहीं हो पा रहा। इसकी वजह चीन का दबाव है। पाकिस्तान अगर इसके लिए कोशिश करता तो भी बीजिंग ऐसा होने नहीं देता और अगर टैक्स देता तो फिर मनमर्जी से शराब बेचने लगता।
CPEC में पाकिस्तान का कुछ नहीं
पाकिस्तानी मीडिया और यहां तक कि अफसर भी मानते हैं कि CPEC से पाकिस्तान को कुछ नहीं मिलने वाला और आखिर में यह सिर्फ चीन के ही काम आएगा। कमर चीमा कहते हैं- जिस प्रोजेक्ट पर 100 लाख डॉलर खर्च होते हैं, चीन उसकी लागत 125 लाख डॉलर बताता है। चीनी कंपनियां पूरा मटेरियल और मशीनरी वहीं से लाते हैं। पाकिस्तान से सिर्फ रेत खरीदी जाती है। इससे लोकल इंडस्ट्रीज को क्या फायदा? यही वजह है कि ग्वादर और बलूचिस्तान के बाकी हिस्सों में जबरदस्त विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं, लेकिन सरकार के इशारे पर मेन स्ट्रीम मीडिया कुछ नहीं दिखाता। सोशल मीडिया पर सब मौजूद है।
आगे क्या मुमकिन
फिलहाल CPEC के खिलाफ बलूचिस्तान और खासतौर से इसका सेंट्रल पॉइंट ग्वादर जल रहा है। दोनों सरकारों में प्रोजेक्ट की शर्तों को लेकर तनातनी है। कई वजहों से काम ठप है। अमेरिका और यूरोप CPEC के सख्त खिलाफ हैं। चीनी के कर्मचारी लौट रहे हैं और अब यहां शराब मिलनी भी बंद हो गई है या हो रही है। इमरान सरकार की दिक्कत ये है कि अगले साल चुनाव होने हैं और वो कट्टरपंथियों को नाराज करने का रिस्क नहीं ले सकती। इधर चीन भी मुंह फुलाकर बैठा है। कुल मिलाकर उसके लिए एक तरफ कुंआ और दूसरी तरफ खाई जैसे हालात हैं।
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