इंडोनेशिया अपनी राजधानी बदलने जा रहा है। नई राजधानी का नाम नुसंतारा होगा। इससे संबंधित बिल को इंडोनेशिया की संसद ने मंगलवार को मंजूरी दे दी। नुसंतारा ईस्ट कालीमंतन इलाके में है, जो बोर्नियो द्वीप का हिस्सा है। एक अनुमान के मुताबिक, नई राजधानी के कंस्ट्रक्शन पर राष्ट्रीय खजाने से करीब 33 अरब डॉलर खर्च होंगे। केंद्र सरकार के तमाम मंत्रालय और फॉरेन मिशन-एम्बेसीज नुसंतारा ही शिफ्ट किए जाएंगे। हालांकि, नई राजधानी कब तक तैयार होगी? इस बारे में तस्वीर अभी साफ नहीं है। अलबत्ता ग्राउंड कंस्ट्रक्शन वर्क 2024 की पहली तिमाही, यानी मार्च तक शुरू हो जाएगा।
3 साल बाद मंजूर हुआ बिल
इंडोनेशिया के राष्ट्रपति जोको विडोडो साल 2019 में पहली बार नई राजधानी बसाने से संबंधित बिल संसद में लाए थे। इस पर विचार करने के लिए स्पेशल कमेटी बनाई गई थी। इस प्रस्ताव को बिल की शक्ल दी गई। अब यह मंजूर हो गया है। नई राजधानी के एडमिनिस्ट्रेशन का जिम्मा स्टेट कैपिटल अथॉरिटी के चीफ के पास होगा। वैसे तो बोर्नियो बड़ा द्वीप है, लेकिन नुसंतारा को 256,142 हेक्टेयर में बसाया जाएगा।
नई राजधानी बसाने के खतरे भी कम नहीं
नुसंतारा बोर्नियो द्वीप के कालीमंतन का हिस्सा है। बोर्नियो द्वीप कुदरती तौर पर बेहद खूबसूरत है। यहां घने जंगल और छोटी नदियां हैं। ‘द गार्डियन’ के मुताबिक, नुसंतारा का जब कंस्ट्रक्शन होगा, तो इस हिस्से में हरियाली कम हो जाएगी और इससे ईको-सिस्टम पर असर पड़ेगा। पॉल्यूशन भी बढ़ेगा। बरसाती जंगल कम होंगे और इसकी वजह से जंगली जानवरों का रहना मुश्किल हो जाएगा। यहां भालू और लंबी नाक वाले बंदर ज्यादा पाए जाते हैं। इनका इलाका छिनेगा तो ये हिंसक भी हो सकते हैं।
एडमिनिस्ट्रेशन और बजट
राजधानी बदलने की जरूरत क्यों
जकार्ता क्यों नहीं...
नुसंतारा ही क्यों...
नुसंतारा नाम क्यों और कैसे
इंडोनेशिया के अर्बन डेवलपमेंट मिनिस्टर सुरारसो मोनोरफा के मुताबिक- इंडोनेशियाई भाषा में नुसंतारा का मतलब ऐसी जगह से है, जो चारों तरफ पानी से घिरी हो। हमें 80 नाम मिले थे। इनमें से नुसंतारा फाइनली शॉर्ट लिस्ट किया गया। यह याद रखने में भी आसान है। इसके साथ ऐतिहासिक बातें भी जुड़ी हुई हैं और ये इस देश की पहचान हैं।
इससे पहले भी राजधानी बदल चुके हैं कई देश
हमारी राजधानी भी पहले कलकत्ता थी
अंग्रेजों के दौर में पहले भारत की राजधानी भी दिल्ली नहीं, बल्कि कलकत्ता (अब कोलकाता) थी। 11 दिसंबर 1911 को जॉर्ज पंचम ने इसे दिल्ली शिफ्ट करने का ऐलान किया। इस कवायद को पूरा होने में दो दशक लग गए। 13 फरवरी 1931 को दिल्ली देश की नई राजधानी बनी। हालांकि, दिल्ली को राजधानी बनाने की वजह अंग्रेजों का अपना नजरिया था। माना जाता है कि वे कोलकाता को सुदूर हिस्सा मानते थे और दिल्ली बहुत हद तक मध्य में था। अंग्रेजों का मानना था कि यहां से पूरे देश पर पकड़ रखना कोलकाता के बनिस्बत ज्यादा आसान होगा।
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