अमेरिकी सरकार ने पेगासस स्पायवेयर बनाने वाली कंपनी को बैन और ब्लैक लिस्ट कर दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि यह इजराइली कंपनी अब अमेरिका में किसी तरह का कारोबार नहीं कर सकेगी। अमेरिका में इस कंपनी के खिलाफ जांच चल रही थी। इसमें पाया गया कि यह इजराइली फर्म जासूसी में इस्तेमाल होने वाले सॉफ्टवेयर बेच रही थी। इनके जरिए अफसरों और पत्रकारों की जासूसी की जा रही थी। भारत में भी इस सॉफ्टवेयर को लेकर सियासी तौर पर काफी बवाल हुआ था।
आवाज दबाने की कोशिश
अमेरिकी कॉमर्स डिपार्टमेंट ने एक बयान में कहा- पेगासस का इस्तेमाल सरकार विरोधी आवाज दबाने के लिए भी किया जाता है। यह अमेिरकी मूल्यों के हिसाब से सही नहीं है। जर्नलिस्ट्स और एक्टिविस्ट्स को निशाना बनाया जाता है।
पेगासस को NSO नाम की कंपनी बनाती है जो तेल अवीव में है। इसके जरिए अफसरों, नेताओं, पत्रकारों, कारोबारियों और एम्बेसी वर्कर्स की जासूसी किए जाने के आरोप लगे हैं।
पेगासस विवाद क्या है?
खोजी पत्रकारों के अंतरराष्ट्रीय ग्रुप का दावा है कि इजराइली कंपनी NSO के जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस से 10 देशों में 50 हजार लोगों की जासूसी हुई। भारत में भी 300 नाम सामने आए हैं, जिनके फोन की निगरानी की गई। इनमें सरकार में शामिल मंत्री, विपक्ष के नेता, पत्रकार, वकील, जज, कारोबारी, अफसर, वैज्ञानिक और एक्टिविस्ट शामिल हैं।
पेगासस काम कैसे करता है?
साइबर सिक्योरिटी रिसर्च ग्रुप सिटीजन लैब के मुताबिक, किसी डिवाइस में पेगासस को इंस्टॉल करने के लिए हैकर अलग-अलग तरीके अपनाते हैं। एक तरीका ये है कि टारगेट डिवाइस पर मैसेज के जरिए एक “एक्सप्लॉइट लिंक” भेजी जाती है। जैसे ही यूजर इस लिंक पर क्लिक करता है, पेगासस अपने आप फोन में इंस्टॉल हो जाता है।
2019 में जब वॉट्सऐप के जरिए डिवाइसेस में पेगासस इंस्टॉल किया गया था, तब हैकर्स ने अलग तरीका अपनाया था। उस समय हैकर्स ने वॉट्सऐप के वीडियो कॉल फीचर में एक कमी (बग) का फायदा उठाया था। हैकर्स ने फर्जी वॉट्सऐप अकाउंट के जरिए टारगेट फोन पर वीडियो कॉल किए थे। इसी दौरान एक कोड के जरिए पेगासस को फोन में इंस्टॉल कर दिया गया था।
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