इजराइल को एक आजाद मुल्क बने 70 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन फिलिस्तीन विवाद की वजह से अब तक कई मुस्लिम देशों ने उसे मान्यता नहीं दी है। पाकिस्तान और सऊदी अरब उन इस्लामिक देशों में शुमार हैं, जिन्होंने फिलिस्तीन से एकजुटता दिखाने के लिए अब तक इजराइल को मान्यता नहीं दी है। दोनों देश UN छोड़कर ऐसे किसी प्लेटफॉर्म पर नहीं जाते, जहां इजराइल की मौजूदगी हो। बहरहाल, अब ये दोनों देश इजराइल के साथ नेवी एक्सरसाइज कर रहे हैं। गौर से देखें तो इसके बेहद गंभीर कूटनीतिक और रणनीतिक मायने हैं।
क्या है मामला
अमेरिकी नेवी 2012 से एक मल्टीनेशनल नेवी एक्सरसाइज करती है। इस बार भी यह नेवी ड्रिल चल रही है। इसमें 60 देशों के 9 हजार नैसैनिक हिस्सा ले रहे हैं। यह एक्सरसाइज 31 जनवरी को शुरू हुई थी। खास बात यह है कि इसमें इजराइल भी शामिल है और पाकिस्तान-सऊदी अरब जैसे उसके कथित दुश्मन भी। अमेरिकी और इजराइली मीडिया ने इसकी पुष्टि की है।
दूसरी तरफ, पाकिस्तान और सऊदी अरब ने इस पर चुप्पी साध रखी है। पाकिस्तान के अखबार ‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ में इस इंटरनेशनल मेरिटाइम एक्सरसाइज पर एडिटोरियल भी पब्लिश हुआ, लेकिन उसमें कहीं इजराइल का जिक्र तक नहीं है।
इसके मायने समझिए
कुछ दिन पहले पाकिस्तान के पूर्व आर्मी जनरल अमजद शोएब ने एक टीवी प्रोग्राम में कहा था- दुनिया बदल रही है और हम इजराइल जैसे देश के साथ हमेशा मजहब के आधार पर दुश्मनी नहीं रख सकते। ये समझदारी का काम नहीं है। बहरीन, UAE और ओमान जैसे देश इजराइल को मान्यता दे चुके हैं। इन देशों को इसका जबरदस्त फायदा भी हो रहा है। मुझ से कई लोग इस बारे में सवाल करते हैं कि आप, यानी पाकिस्तान पीछे क्यों है।
यहां एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि शोएब का बयान क्यों अहम है। दरअसल, टीवी प्रोग्राम्स या डिबेट में शिरकत करने वाले पूर्व अफसरों के नाम पाकिस्तान के आर्मी चीफ और वहां का मीडिया विंग DG ISPR तय करता है। लिहाजा, ये शोएब का यह बयान निजी नहीं था। माना ये जा रहा है कि मुल्क के कट्टरपंथियों का इजराइल के बारे में रिएक्शन देखने के लिए ही यह बयान दिलवाया गया था। खेल दोहरा था। अगर बवाल होता तो इसे शोएब का निजी बयान बता दिया जाता। अब चूंकि कोई नाराजगी जाहिर नहीं की गई तो माना जा रहा है कि पाकिस्तान के लोगों की इजराइल के बारे में सोच बदल रही है।
रिएक्शन चेक या कुछ और
शुरुआत एक मल्टीनेशनल मिलिट्री एक्सरसाइज में इजराइल के साथ पाक और सऊदी की शिरकत से हुई है। ये काम भी पहली बार ही हुआ है। अब तक पाकिस्तान और सऊदी अरब में कहीं भी इस मामले में विरोध नहीं हुआ। जाहिर सी बात है कि भविष्य में कुछ और तरीके अपनाकर अमेरिका इन देशों को करीब लाएगा।
ये काम डोनाल्ड ट्रम्प के दौर में ‘अब्राहम अकॉर्ड’ से शुरू हुआ था और तभी खाड़ी के पांच देशों ने इजराइल को मान्यता दी थी। इनमें बहरीन और UAE भी शामिल थे। अब जो बाइडेन भी डोनाल्ड ट्रम्प के ही रास्ते पर बढ़ रहे हैं। खुद इमरान ने पिछले साल कहा था- मेरे ऊपर इजराइल को तस्लीम (कबूल) करने का दबाव है, लेकिन मेरी आत्मा इसकी इजाजत नहीं देती।
क्या पक रहा है और आगे क्या मुमकिन
गल्फ स्टेट्स, यानी खाड़ी देशों की हिफाजत का जिम्मा हमेशा से अमेरिका ने लिया है। इजराइल और अमेरिका की राय लगभग हर मामले पर एक ही रही है। अमेरिका के सामने रूस और चीन की चुनौतियां हैं। चीन भी खाड़ी में पैर पसारने की कोशिश कर रहा है। कई मोर्चों पर अमेरिका और चीन आमने-सामने हैं।
अमेरिका चाहता है कि मुस्लिम देश इजराइल का विरोध खत्म करें और उसकी लीडरशिप में एक नया अलायंस बने। इसके लिए वो हर हथकंडा चुपचाप इस्तेमाल कर रहा है। ये नेवी एक्सरसाइज भी इसी प्लान का हिस्सा है।
मुमकिन है बहुत जल्द इजराइल और सऊदी अरब के डिप्लोमैटिक रिलेशन बनें। पिछले साल एक हाईलेवल इजराइली डेलिगेशन चुपचाप रियाद के करीब नए बसाए जा रहे शहर नियोन पहुंचा था। इसकी पुष्टि फ्लाइट डेटा ट्रैकर से हो चुकी है। कहा जाता है कि उस स्पेशल फ्लाइट में इजराइल के तब के राष्ट्रपति बेंजामिन नेतन्याहू भी थे। यानी बैकडोर डिप्लोमैसी के तहत बहुत कुछ पक रहा है, चल रहा है। रही बात पाकिस्तान की तो उससे इजराइल को कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि पाकिस्तान वही करेगा जो उसे कर्ज देने वाला सऊदी अरब कहेगा।
Copyright © 2023-24 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.