UN और दुनिया के कई संगठन कह चुके हैं कि अफगानिस्तान में भुखमरी बिल्कुल सिर पर खड़ी है और अगर दुनिया ने उसकी जल्द मदद नहीं की तो यह सर्दियां वहां के लोगों के लिए जानलेवा साबित हो सकती हैं। इंसानियत के तकाजे को देखते हुए भारत ने 50 हजार टन गेहूं और करोड़ों रुपए की दवाइयां-मेडिकल इक्विपमेंट्स अफगानिस्तान भेजने का फैसला किया।
ये सामान वाघा बॉर्डर के जरिए पाकिस्तान और फिर अफगानिस्तान भेजा जाना है। पाकिस्तान ने 47 दिन के बाद अपने रास्ते के इस्तेमाल को मंजूरी तो दी, लेकिन कुछ अजीब शर्तें रख दीं। इनसे साफ जाहिर है कि पाकिस्तान की नीयत आखिर क्या है। इसमें साजिश की बू आती है। आइए इसे समझते हैं।
पहले मसला समझिए
अमेरिका और UN की अपील पर 7 अक्टूबर को भारत ने 50 हजार टन गेहूं, दवाईयां और मेडिकल इक्विपमेंट्स भेजने का ऐलान किया। इसके लिए पाकिस्तान से मदद मांगी, क्योंकि ट्रकों के जरिए वाघा बॉर्डर से यह माल पहले पाकिस्तान और फिर अफगानिस्तान भेजा जा सकता है। इसमें तीन फायदे हैं। पहला- खर्च कम होगा। दूसरा- जल्दी और आसानी से माल भेजा जा सकेगा। तीसरा- अफगान अवाम को बांटने में आसानी होगी।
अब पाकिस्तान का खेल समझिए
इमरान खान सरकार, ISI और फौज को उम्मीद नहीं थी कि भारत इतने जल्दी अफगानिस्तान की मदद का फैसला लेगा। 7 अक्टूबर को भेजे गए भारतीय विदेश मंत्रालय के लेटर का जवाब पाकिस्तान ने 24 नवंबर को दिया। इसमें फिजूल सी कुछ शर्तें रख दीं। इनका खुलासा अब हो रहा है और इसके साथ ही पाकिस्तान का असली चेहरा भी दुनिया के सामने आ रहा है। इन्हें समझते हैं।
वाघा बॉर्डर पर लोडिंग-अनलोडिंग क्यों : पाकिस्तान की शर्त है कि भारत के ट्रक वाघा बॉर्डर पर माल उतारें। वहां से इन्हें पाकिस्तान के ट्रकों में लोड किया जाए। फिर ये ट्रक अफगानिस्तान पहुंचें।
क्या है खेल : पाकिस्तान एक तीर से दो शिकार करना चाहता है। पहला- पाकिस्तानी ट्रक जब सहायता सामग्री लेकर जाएंगे तो बीच में इस पर हाथ साफ किया जा सकता है, यानी चोरी किया जा सकता है। इन्हें अपने गोदामों में ट्रांसफर कर सकता है। दूसरा- ट्रकों पर पाकिस्तान का झंडा होगा। मतलब अफगानिस्तान की जनता ये समझे कि उन्हें भूख से बचाने के लिए पाकिस्तान गेहूं और दवाईयां भेज रहा है।
ट्रक उनके, चार्ज हमसे चाहिए
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान चाहता है कि भारत से जो राहत सामग्री पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान भेजी जा रही है, उस पर माल भाड़ा और टोल टैक्स भारत सरकार अदा करे। ये इसलिए हास्यास्पद है, क्योंकि एक तरफ तो वो वाघा बॉर्डर से अपने ट्रकों में माल भेजने की मांग कर रहा है और दूसरी तरफ भाड़ा भारत से मांग रहा है।
भारत सब समझता है...
पाकिस्तान की शर्तों या मांगों को भारत सरकार बहुत बेहतर समझती है। यही वजह है कि भारत ने पहले ही साफ कर दिया कि अफगानिस्तान तक भारत के ही ट्रक जाएंगे। इन ट्रकों के साथ UN की टीम होगी। भाड़े या टोल टैक्स पर तस्वीर साफ नहीं है।
तालिबान का भी दखल नहीं चाहिए
रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत चाहता है कि अफगानिस्तान भेजी गई राहत सामग्री सीधे वहां के जरूरतमंद लोगों तक पहुंचे। इसमें वहां की तालिबान हुकूमत का दखल नहीं होना चाहिए। अगर तालिबान को यह रसद सौंपी जाती है तो मुमकिन है इसका गलत इस्तेमाल किया जाए, शायद पाकिस्तान को भी कुछ हिस्सा मिल जाए। इसलिए UN के कर्मचारी इसे सीधे भूखे अफगानियों तक पहुंचाएं।
खुद ने ही कलई खोल दी
इमरान और उनके मंत्री 15 अगस्त के बाद से ही अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत के प्रवक्ता बने घूम रहे हैं। बार-बार कह रहे हैं कि दुनिया अफगानिस्तान की मदद करे। वहां भुखमरी का खतरा है। तालिबान हुकूमत को मान्यता दी जाए। अब जबकि भारत ने मदद का फैसला किया तो उसने फिजूल शर्तें रख दीं। वो शायद ये भूल गया कि UN मिशन के जरिए हर देश उसकी हरकतों पर नजर रख रहा है। उसे इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
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