भारत ने सितंबर 1960 की सिंधु जल संधि में संशोधन के लिए पाकिस्तान को नोटिस जारी किया है। सूत्रों के मुताबिक भारत इस समझौते को लागू करने के लिए हमेशा से कमिटेड रहा है, लेकिन पाकिस्तान की मनमानियों की वजह से इस संधि पर असर पड़ रहा है। यही वजह है कि भारत, पाकिस्तान को नोटिस जारी करने पर मजबूर हुआ है।
दरअसल भारत सिंधु जल संधि में बदलाव चाहता है, लेकिन पाकिस्तान इसे टाल रहा है। वो भारत से सीधी बात न करते हुए बार-बार वर्ल्ड बैंक के पास पहुंच जाता है। भारत ने इस नोटिस के जरिए पाकिस्तान को IWT के उल्लंघन (मटेरियल ब्रीच) को सुधारने के लिए 90 दिनों में इंटर गवर्नमेंट नेगोशिएशन करने का मौका दिया है। यह पहली बार है जब भारत ने सिंधु जल समझौते में संशोधन की मांग की है।
वर्ल्ड बैंक ने शुरू की कार्रवाई
न्यूज एजेंसी ANI की रिपोर्ट के मुताबिक, पाकिस्तान के बार-बार कहने पर वर्ल्ड बैंक ने हाल ही में न्यूट्रल एक्सपर्ट और कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन प्रोसेस की कार्रवाई शुरू की है। जबकि IWT के किसी भी प्रावधान के तहत ये दोनों कार्रवाई एक साथ नहीं हो सकती।
अब समझिए क्या है पूरा मामला...
पाकिस्तान ने भारत की किशनगंगा और रतले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट (HEPs) को लेकर आपत्ति जताई थी। इसकी जांच के लिए पाकिस्तान ने 2015 में एक न्यूट्रल एक्सपर्ट की नियुक्ति की मांग की थी। 2016 में पाकिस्तान ने एकतरफा रूप से इस मांग को वापस ले लिया था। इसके तुरंत बाद वो कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन के पास पहुंच गया था। वो चाहता था कि कोर्ट ऑफ आरबिट्रेशन इन आपत्तियों पर फैसला करे।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, पाकिस्तान की ये हरकत IWT के डिस्प्यूट सेटलमेंट के आर्टिकल IX के खिलाफ है। भारत ने इस मुद्दे को अलग से एक न्यूट्रल एक्सपर्ट के पास भेजने की मांग की थी। तब वर्ल्ड बैंक का कहना था कि एक ही मुद्दे पर समानांतर कार्रवाई कानूनी रूप से अस्थिर स्थिति पैदा कर सकती है। इससे IWT खतरे में पड़ सकती है, लेकिन अब वर्ल्ड बैंक ने इस मुद्दे पर कार्रवाई करने का फैसला लिया है।
पाकिस्तान इस मुद्दे पर भारत से बात नहीं कर रहा
भारत ने कई बार इस मुद्दे पर पाकिस्तान से बात करने की कोशिश की, लेकिन पाकिस्तान ने हर बार मना कर दिया। भारत ने ये मुद्दा 2017 से 2022 के बीच 5 बार परमानेंट इंडस कमीशन में उठाया, लेकिन हल नहीं निकला।
सिंधु जल संधि के लिए वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थता की थी
सिंधु जल संधि पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितंबर 1960 को तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए वर्ल्ड बैंक ने मध्यस्थता की थी।
इन नदियों के कुल 16.8 करोड़ एकड़-फीट में भारत का हिस्सा 3.3 करोड़ एकड़-फीट है, जो कुल हिस्से का लगभग 20 प्रतिशत है। वहीं, पश्चिम की नदियां सिंधु (इंडस), चिनाब और झेलम का पानी पाकिस्तान को दिया गया है। हालांकि भारत को अधिकार है कि वह इन नदियों के पानी को कृषि, घरेलू काम में इस्तेमाल कर सकता है। इसके साथ ही भारत निश्चित मापदंडों के भीतर हाइड्रोइलेक्ट्रिक पावर प्रोजेक्ट भी बना सकता है।
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