कैलाश मानसरोवर यात्रा के लिए भारत ने शुक्रवार को लिपुलेख-धाराचूला मार्ग का उद्घाटन किया। नेपाल ने इसे एकतरफा गतिविधि बताते हुए शनिवार को आपत्ति जताई। वहां के विदेश मंत्रालय ने दावा किया है कि महाकाली नदी के पूर्व का पूरा इलाका नेपाल की सीमा में आता है। भारत को दूसरे देश की सीमा में किसी भी तरह की गतिविधि से बचना चाहिए। नवंबर के बाद यह दूसरा मौका है जब नेपाल ने इस तरह से नाराजगी जाहिर की। इससे पहले उसे कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को भारत के नक्शे में दिखाए जाने पर ऐतराज था।
विदेश मंत्रालय ने नेपाल को जवाब दिया- लिपुलेख हमारे सीमा क्षेत्र में आता है और लिपुलेख मार्ग से पहले भी मानसरोवर यात्रा होती रही है। हमने अब सिर्फ इसी रास्ते पर निर्माण कर तीर्थ यात्रियों, स्थानीय लोगों और कारोबारियों के लिए आवागमन को सुगम बनाया है। दूसरी ओर, नेपाल के इस रवैये से दोनों देशों के बीच तल्खी बढ़ती दिख रही है। भारत ने कोरोना महामारी को लेकर नेपाल के साथ होने जा रही सेक्रेटरी लेवल की बातचीत स्थगित कर दी है।
एकतरफा गतिविधि प्रधानमंत्रियों की पहल के खिलाफ: नेपाल
यह रास्ता सेना के लिए भी फायदेमंद है
उत्तराखंड में 17 हजार फीट की ऊंचाई पर लिपुलेख-धाराचूला मार्ग की शुरुआत रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए की थी। यह रास्ता 80 किलोमीटर लंबा है। इसे बॉर्डर रोड ऑर्गनाइजेशन ने तैयार किया है। नए रास्ते से कैलाश मानसरोवर की यात्रा अब सुगम होगी। यह इलाका बेहद दुर्गम है। इसके अलावा चीन की सीमा भी यहां से काफी करीब है। सेना के लिए भी इस सड़क का खास महत्व है। चीन सीमा पर सैनिकों की तैनाती और रसद आपूर्ति आसान होगी।
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