श्रीलंका की सात अहम तमिल पार्टियों के नेताओं ने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक लेटर लिखा है। इस लेटर में कहा गया है कि भारत श्रीलंकाई तमिलों को उनके अधिकार दिलाने में मदद करे। दरअसल, 29 जुलाई 1987 को भारत और श्रीलंका की सरकारों के बीच एक समझौता हुआ था। इसमें श्रीलंका ने वादा किया था कि वो देश के तमिलों को संविधान के 13वें संशोधन के तहत तमाम अधिकार देगा। हालांकि, करीब 35 साल गुजरने के बाद भी श्रीलंका की किसी भी सरकार ने यह अधिकार तमिलों को नहीं दिए।
सात नेताओं की एक चिट्ठी
टीएनए, आईटीएके, टीईएलओ, पीएलओटीई, टीएमपी और टीएनपी के राष्ट्रीय अध्यक्षों ने मोदी को यह चिट्ठी लिखी है। यह पार्टियां उत्तरी और पूर्वी श्रीलंका में गहरी पैठ रखती हैं। इनके ज्यादातर समर्थक तमिल हैं। लिहाजा इन्हें तमिलों की पार्टियां ही कहा जाता है। लेटर में मोदी को सिलसिलेवार तरीके से वो पॉइंट्स बताए गए हैं, जहां तमिल सुधार चाहते हैं। यह चिट्ठी श्रीलंका में मौजूद भारतीय हाईकमीशन के जरिए भेजी गई है।
मोदी से क्या गुहार
1987 में भारत और श्रीलंका के बीच हुए समझौते में यह साफ तौर पर कहा गया था कि 13वें संशोधन के तहत स्टेट काउंसिल बनाई जाएंगी और इनमें तमिलों को भी संख्या के आधार पर जगह दी जाएगी। इस समझौते को अब तक लागू नहीं किया गया। इस वजह से तमिल सत्ता और सिस्टम का हिस्सा नहीं बन पाए हैं। इनकी नाराजगी इसी वजह से है। अब ये पार्टियां चाहती हैं कि भारत श्रीलंका सरकार के सामने यह मुद्दा उठाए ताकि तमिलों को उनका हक मिल सके। इसमें कहा गया है कि 1948 से ही तमिल अधिकार मांग रहे हैं, लेकिन उनकी सुनवाई नहीं होती।
मुस्लिमों की भी बात
श्रीलंका में सिंहली मेजॉरिटी (करीब 74.9%) है और वो बौद्ध धर्म मानती है। तमिलों की आबादी करीब 15% है। देश में करीब 9.7% मुस्लिम हैं। जिन नेताओं ने मोदी को लेटर लिखा है, उन्होंने मुस्लिम अधिकारों का भी जिक्र किया है। इसमें कहा गया है- हम चाहते हैं कि भविष्य का श्रीलंका ऐसा हो जहां तमिलों और मुस्लिमों को भी उनका हक मिले। भारत लंबे वक्त से इसके लिए कोशिश करता रहा है, हम इसकी तारीफ करते हैं। राष्ट्रपति राजपक्षे को भी अपना वादा पूरा करना चाहिए। उन्होंने कहा था- हम सत्ता का हस्तांतरण करना चाहते हैं। 2009 में भी श्रीलंका सरकार ने UN के सामने यही वादा किया था, लेकिन इसे कभी पूरा नहीं किया।
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