स्कूल में टीचर अगर बच्चों को बहस या झगड़ा करते देखते हैं तो बीच-बचाव करते हैं, उन्हें समझाते हैं। दुनियाभर में बच्चों को संभालने के लिए यही तरीके अपनाए जाते हैं। पर जापान के स्कूलों में दूर रहने की नीति अपनाई गई। यानी बच्चों के झगड़े में बड़ों द्वारा दखल न देना।
विशेषज्ञों का कहना है कि इससे बच्चों में स्वायत्तता और समाधान निकालने के लिए प्रोत्साहित होने के मौके खुले। इससे दूसरे देशों में झगड़ने वाले बच्चों को संभालने की नई रणनीति भी सामने आई। इसे मिमामोरू कहते हैं। ‘मिमा’ का अर्थ है नजर रखना और ‘मोरू’ यानी रक्षा करना। इसे टीचिंग बाय वॉचिंग के तौर पर समझ सकते हैं। जहां बड़े जानबूझकर बच्चों के बीच दखल नहीं देते, ताकि असहमति की स्थिति में बच्चे अपनी मर्जी और फैसलों से सीख सकें।
हिरोशिमा यूनिवर्सिटी की स्टडी में बच्चों के झगड़े सुलझाने के इस तरीके को कारगर पाया गया है। यूनिवर्सिटी में मानविकी और समाज विज्ञान के विशेषज्ञ फुमिनोरी नाकात्सुबो के मुताबिक स्टडी में जापानी और अमेरिकी शिक्षकों को शामिल कर यह जानने की कोशिश की गई कि जापानी, बच्चों की लड़ाई में क्यों दखल नहीं देते और इसके क्या फायदे हैं। बच्चे झगड़ रहे हों तो चुपचाप रहना अजीब लग सकता है, पर मिमामोरू ऐसी नोकझोंक को सीखने के बड़े मौके के रूप में देखती है।
अगर बड़े तुरंत दखल दे देते हैं, तो वे बच्चों से सीखने के मौके छीन लेते हैं। वहीं, बच्चों को ऐसी स्थिति में आंकना उन्हें अनजाने में अच्छा या बुरा साबित कर सकता है। अमेरिकी शिक्षकों का कहना है कि इस रणनीति के लिए शिक्षा नीति में कुछ बदलाव करने होंगे। सही तरीके से लागू हो तो अमेरिका ही नहीं दुनियाभर के देशों में यह तकनीक फायदेमंद साबित हो सकती है।
बच्चों की सुरक्षा सर्वोपरि, उसे अनदेखा न करें: शोधकर्ता
स्टडी बताती है कि झगड़े के बाद बच्चों को लगता है कि ऐसा नहीं करना चाहिए था। वे समझ जाते हैं कि झगड़े से समस्या हल नहीं हो सकती। शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया कि दूर रहने का अर्थ यह नहीं है कि बच्चों की सुरक्षा को अनदेखा करें। पर दखल तभी दें जब नुकसान का जोखिम सीखने के फायदे से ज्यादा हो। मिमामोरू की 3 खासियतें हैं, ‘जोखिम कम करने के लिए कम दखल, समाधान के लिए बच्चों को प्रोत्साहन और बड़ों की मदद बिना झगड़े सुलझाना।’ ये बच्चों को जिम्मेदार बनाती हैं।
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