बेलगाम इंटरनेट और सोशल मीडिया कंपनियों के नियमन के लिए सरकार द्वारा लाए गए सख्त नियम टेक दिग्गजों को पसंद नहीं आ रहे हैं, इसलिए उन्होंने सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलने का मन बना लिया है। टेक कंपनियां जिम्मेदारी से बचने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की आड़ ले रही हैं। सरकार का तर्क है कि अभिव्यक्ति की आजादी की अपनी सीमाएं भी हैं। यह अधिकार अतिवादी और आतंकी तत्वों को नहीं मिल सकता। यदि मिला तो वे अशांति, उपद्रव फैलाने का काम कर सकते हैं। अक्सर ये कंपनियां ऐसे तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं करतीं।
हाल के दिनों में मोदी सरकार ने ट्विटर पर रखनी शुरू की है। कैबिनेट मंत्रियों ने अमेरिकी कंपनी पर आदेशों की अवहेलना करने का आरोप लगाया है और सुझाव दिया है कि इसे मध्यस्थ स्थिति से हटा दिया जाना चाहिए और यूजर द्वारा पोस्ट की गई सामग्री के लिए सीधे जवाबदेह बनाना चाहिए। टेक पॉलिसी ब्लॉग टेकडर्ट के फाउंडर माइक मसनिक ने कहा, ‘ट्विटर यहां जीत की स्थिति में नहीं है।’ उधर भारत स्पष्ट कर चुका है कि नए नियमों का उद्देश्य सार्वजनिक व्यवस्था की रक्षा करना और बाल अश्लीलता और दुर्व्यवहार वीडियो जैसी हानिकारक सामग्री को रोकना है। हाल में देश सोशल मीडिया पर नकली समाचारों के विस्फोट से जूझ रहा है, इसमें से अधिकांश ने बड़े पैमाने पर पहली बार नेट यूजर्स को लक्षित किया है।
फेसबुक की पूर्व सार्वजनिक नीति निदेशक केटी हरबाथ कहती हैं कि ट्विटर जैसी कंपनियों को अपने फैसलों को ध्यान से देखना होगा ताकि वह एक बड़े बाजार से बाहर न हो जाए। ऑस्ट्रेलिया, पोलैंड और नाइजीरिया जैसे देश सोशल प्लेटफॉर्म पर सख्त हो रहे हैं। नाइजीरिया ने ट्विटर बैन कर दिया।
जर्मनी ने प्लेटफार्मों को अवैध कंटेंट हटाने या जुर्माना झेलने के लिए कहा है। बैंगलोर स्थित तक्षशिला इंस्टीट्यूशन के शोध विश्लेषक व डिजिटल प्लेटफॉर्म की स्टडी करने वाले प्रतीक वाघरे कहते हैं कि कंपनियां भारत में जो भी फैसला लेंगी, वह बाकी दुनिया के लिए एक टेम्पलेट के रूप में काम करेगा।
कंपनियों को डर: भारत से सीखकर अन्य देश भी सख्त रुख अपना सकते हैं
दरअसल कंपनियों की हड़बड़ाहट का एक बड़ा कारण भारत का बड़ा यूजरबेस है। क्योंकि चीन से बाहर रहने के बाद सिर्फ भारत में ही 100 करोड़ लोग हैं। देश में व्हाट्सएप के 53 करोड़ यूजर,यू-ट्यूब के 45 करोड़, फेसबुक के 41 करोड़ वहीं ट्विटर के 1.75 करोड़ यूजर हैं। भारत इन कंपनियों के लिए तेजी से बढ़ता बाजार है। कंपनियों को डर है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र द्वारा की गई कार्रवाई अन्य देशों की सरकारों के लिए घरेलू सुरक्षा सख्त करने का मजबूत आधार बन सकती है।
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