इन दिनों इलेक्ट्रिक कारें काफी चर्चा में हैं। हालांकि अगर बिक्री के आंकड़े देखें तो इस साल इलेक्ट्रिक व्हीकल की बिक्री कारों की कुल बिक्री की 4 फीसदी से भी कम होने की उम्मीद है। इसकी एक प्रमुख वजह तो यह है कि लंबी यात्राओं के दौरान आसानी से रिचार्ज करने की सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। ईवी की रेंज, चार्जिंग का समय और चार्जिंग स्टेशन की उपलब्धता ये सभी फिलहाल दूर की कौड़ी हैं।
चार्जिंग में लगने वाला समय भी एक बड़ी समस्या है। इस समस्या के निदान के लिए ऐसी सड़कें बनाने की दिशा में काम चल रहा है, जो कारों को चलने पर उन्हें चार्ज भी कर देंगी। इसके लिए इंडक्टिव चार्जिंग नामक तकनीक का विकास किया जा रहा है। इस साल जुलाई में इंडियाना के परिवहन विभाग और परड्यू यूनिवर्सिटी ने दुनिया के पहले वायरलेस चार्जिंग कॉन्क्रीट हाइवे की योजना बनाई है।
इस परियोजना पर एस्पायर नामक एक इंजीनियरिंग रिसर्च सेंटर काम कर रहा है। इसे नेशनल साइंस फाउंडेशन से फंडिंग मिल रही है। एस्पायर की कैंपस डायरेक्टर नाडिया कहती हैं कि हमारा उद्देश्य इलेक्ट्रिक वाहनों को सड़क पर चलने के दौरान ही चार्ज करना है। इसके लिए चुंबकीय कॉन्क्रीट तकनीक का उपयोग करते हैं, जिसमें आयरन ऑक्साइड, निकल और जिंक जैसे धातु तत्व मिलाए जाते हैं। इस कॉन्क्रीट को जर्मन कंपनी मैगमेंट ने विकसित किया है। फिलहाल इस तकनीक पर कई चरणों में परीक्षण किया जा रहा है। यह कुछ-कुछ ऐसा ही है जैसे मोबाइल फोन वायरलेस तरीके से चार्ज होता है।
कॉन्क्रीट मिक्सचर में करंट से बनाते हैं चुंबकीय क्षेत्र
कॉन्क्रीट मिक्सचर में बिजली का करंट दौड़ाकर इसे चुंबकीय बनाया जाता है। इससे एक चुंबकीय क्षेत्र बनता है जो वायरलैस तरीके से वाहन को पावर देकर चार्ज करता है। पेटेंट कराए गए मटेरियल से बने 12 फीट लंबी 4 फीट चौड़े प्लेट या बॉक्स को सड़क पर कुछ इंच नीचे दबा दिया जाता है। इस बॉक्स को पावर ग्रिड से जोड़कर इसमें करंट दौड़ाया जाता है। यह ट्रांसमिट होता है, जो सड़क पर दौड़ने वाली ईवी को पावर देता है। कार में लगे एक छोटे बॉक्स के जरिये यह पावर प्राप्त की जाती है।
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