पश्चिम के ज्यादातर देशाें में सहायता लेकर माैत (मेडिकल असिस्टेड डेथ) के पक्ष में जनमत बन रहा है। 2002 में स्पेन में 60% लाेगाें ने इच्छामृत्यु का समर्थन किया था। 2019 में इसके समर्थन में 71% लाेग आ गए। ब्रिटेन के मानव विज्ञानी नाओमी रिचर्ड्स कहते हैं कि मृत्यु सहायता ने माैत और मरने की संस्कृति बदल दी है। लाेग अब माैत के बारे में ज्यादा बात कर रहे हैं। इंस्टाग्राम के युग में ‘अच्छी माैत’ की कल्पना संभव है।
यही नहीं, ‘अच्छी मौत’ अब इवेंट है, जिसकी बाकायदा योजना बनाई जा रही है। कनाडा की डॉ. एलेन वेइब कहती हैं, ‘वे लोगों को समुद्र तट, जंगल या पार्टी के बीच मरने में मदद करती हैं। यह मौत ऐसे समय उचित लगती है, जब कोरोना के बीच लोग अस्पताल में अकेले ही दम तोड़ गए।’ दरअसल, 30 वर्ष पहले स्विट्जरलैंड काे छाेड़कर दुनिया में सभी जगह इच्छामृत्यु पर राेक थी।
1997 में US के ओरेगाॅन में सम्मान से मृत्यु का कानून बना
1997 में अमेरिका के ओरेगाॅन में सम्मान से मृत्यु का कानून बना। इसमें दा डाॅक्टराें को प्रमाणित करना था कि मरीज इच्छामृत्यु चुनने की स्थिति में है और उसकी जिंदगी छह महीने की ही लग रही है। करीब दाे हजार लाेगाें ने इस कानून में माैत चुनी। इसमें काेई भी संदिग्ध माैत का मामला नहीं मिला। अब यह कानून दस राज्याें में है। ओरेगाॅन की तर्ज पर एक कानून 9 नवंबर काे ऑस्ट्रेलिया में अस्तित्व में आया।
ब्रिटेन में भी अक्टूबर में हाउस ऑफ लाॅर्ड्स ने ऐसा कानून पास किया है। अब इसे हाउस ऑफ काॅमंस और सरकार के समर्थन की जरूरत है, जिसकी संभावना कम दिखाई दे रही है। ब्रिटेन में तीन-चाैथाई लाेग मरने के अधिकार का समर्थन करते हैं लेकिन केवल 35% सांसद इसके पक्ष में हैं। यूराेपियन मानवाधिकार काेर्ट ने 2011 मेें व्यवस्था दी थी कि लाेगाें काे उनकी माैत के समय और तरीके पर फैसला करने का अधिकार है।
ऑस्ट्रिया जैसे कई देश इसे स्वीकार कर रहे हैं। जर्मनी की सर्वाेच्च अदालत ने 2020 में कहा था कि मृत्यु में मदद पर राेक लगाना असंवैधानिक है। कनाडा की सुप्रीम काेर्ट ने 2015 में मरने में मेडिकल मदद काे राष्ट्रीय नागरिक अधिकाराें का उल्लंघन करार दिया। वहां अब क्राॅनिक बीमारी या अपंगता से ग्रस्त लाेगाें के लिए मृत्यु की मदद लेने का विकल्प खुला है। 2020 में केवल 6% आवेदन ही नामंजूर हुए।
विराेध भी हाे रहा है
कनाडा में मृत्यु के अधिकार के विराेधी कहते हैं कि इससे ताे यह हाेगा कि मरीजाें काे जीवित रहने में मदद की बजाय हम उनकाे मरने में मदद करने लगेंगे। ऐसे निशक्त जिनकाे पर्याप्त मदद नहीं मिल पा रही हाेगी, वे मृत्यु का विकल्प चुनने लगेंगे। गरीब, बदसलूकी, नस्लभेद के शिकार लाेग इसे आसान रास्ता मान लेंगे। हालांकि अमेरिका के आंकड़े बताते हैं कि मृत्यु में मदद लेने वाले ज्यादातर मध्यमवर्गीय, श्वेत और शिक्षित थे।
एक दर्जन देशाें में वैधानिक, डॉक्टरों पर इसके गलत इस्तेमाल का आरोप
पश्चिम के एक दर्जन देशों में इच्छामृत्यु अपराध के दायरे से बाहर है। कई देशाें में कानून बनाने या अदालत में विचार जारी है। 5 नवंबर काे पुर्तगाली संसद ने लाइलाज और अपरिवर्तनीय बीमारी की स्थिति में इच्छामृत्यु की अनुमति के विधेयक काे मंजूरी दी।
चिली, आयरलैंड, इटली और उरुग्वे जैसे कैथाेलिक देश भी मृत्यु चुनने के अधिकार की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। बेल्जियम, काेलंबिया, नीदरलैंड्स की सरकाराें ने इसमें मरणासन्न बच्चाें काे भी शामिल किया है। हालांकि इसका विराेध भी हाे रहा है। कुछ संस्थाएं कह रही हैं कि डाॅक्टर इसका गलत इस्तेमाल कर सकते हैं।
पूर्ण जीवन जीने वालाें काे भी विकल्प देने की वकालत
नीदरलैंड्स में उदारवादी डी66 पार्टी ऐसे लाेगाें काे भी कानून में शामिल करना चाहती है, जाे महसूस करते हैं कि उन्हाेंने जीवन जी लिया है। उसने ऐसा कानून बनाने का प्रस्ताव किया, जिसमें 75 साल से अधिक उम्र के लाेगाें काे माैत के लिए गाेलियां दी जाएं। इंटरनेट पर बेबी बूमर्स (दूसरे विश्व युद्ध के बाद जन्म दर में उछाल के दाैरान पैदा हुए लाेग) का नेटवर्क है जाे मरने के तरीकाें की जानकारी साझा करता है।
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