अमेरिका ने आखिरकार अफगानिस्तान में अपने सैन्य ऑपरेशंस को खत्म कर दिया है। बीती रात आखिरी अमेरिकी सैनिक ने काबुल एयरपोर्ट से उड़ान भरी। इसके साथ ही अफगानिस्तान के लाखों लोगों की जिंदगी तालिबान के हवाले कर दी गई। इसी के साथ 20 साल में अफगानियों को जो आजादी और बेखौफ जीने का जो जज्बा मिला, उसका भी अंत हो गया है।
तालिबान रात से ही अमेरिकी सेना की वापसी का जश्न मना रहा है। तालिबान ने काबुल एयरपोर्ट को अपने कब्जे में ले लिया और वहां हवाई फायरिंग की। तालिबानियों ने इतनी आतिशबाजी की कि रात में काबुल के आसमान में रोशनी छा गई, लेकिन रोशन होने के बजाय आने वाला समय आम अफगानियों के लिए और ज्यादा स्याह होने की आशंका है।
तस्वीरों में देखिए अमेरिकी सेना के अफगानिस्तान में तैनाती के दौरान 20 सालों में कैसे बदला इस देश का माहौल...
2001 से 2002 तक अफगानिस्तान में जंग का माहौल रहा
2001 में अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान में आतंकियों के खिलाफ ऑपरेशन शुरू किया। अमेरिका की स्पेशल फोर्सेज अफगानिस्तान में तालिबान के विरोधी नॉर्दर्न अलायंस जैसे मिलिशिया के साथ मैदान में कूद पड़ीं। 2001 में नवंबर के दूसरे हफ्ते में राजधानी काबुल के साथ कंधार को भी तालिबान से छुड़ा लिया गया। कंधार तालिबान का गढ़ था। दिसंबर 2001 में ओसामा बिन लादेन तोरा-बोरा पर्वतों से होता हुआ पाकिस्तान भाग गया और इधर, काबुल में हामिद करजई की अगुआई में नई सरकार बना दी गई।
2003 से 2007 के बीच अमेरिकी सरकार का ध्यान इराक में जंग की तरफ मुड़ गया
मई 2003 में अमेरिका के तत्कालीन रक्षामंत्री डोनाल्ड रम्सफेल्ड ने अफगानिस्तान में मुख्य सैन्य अभियानों के खत्म होने की बात कही। उस वक्त तक अमेरिका का ध्यान इराक में सद्दाम हुसैन को सत्ता से हटाने पर लग चुका था। लिहाजा तालिबान ने इसका फायदा उठाना शुरू कर दिया। 2004 में अफगानिस्तान का संविधान तैयार हुआ, लेकिन धीरे-धीरे तालिबान ने घात लगाकर और आत्मघाती हमले शुरू कर दिए।
2008 से 2010 के बीच अमेरिका ने तालिबान को खदेड़ने के लिए दोबारा जोर लगाया
फरवरी 2009 में अमेरिका के नए राष्ट्रपति बराक ओबामा ने अफगानिस्तान में 17 हजार और सैनिकों को भेजने का ऐलान कर दिया। अफगानिस्तान में पहले से 36 हजार विदेशी सैनिक मौजूद थे। ओबामा ने 2010 तक कुल एक लाख सैनिक भेज दिए। अफगानिस्तान में फिर तेज जंग छिड़ गई।
2011 में लादेन मारा गया, अमेरिका ने फौज कम करनी शुरू कर दी
मई 2011 में अमेरिकी नेवी के सील कमांडो के एक दल ने पाकिस्तान के एबटाबाद में अल-कायदा के सरगना ओसामा बिन लादेन को मार गिराया। उसी साल जून में राष्ट्रपति ओबामा ने मई 2012 तक 33 हजार सैनिक वापस बुलाने का ऐलान कर दिया। इस बीच अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई ने नागरिकों की मौत के लिए विदेशी सैनिकों पर आरोप लगाने शुरू कर दिए। अफगान सरकार के साथ संबंध बिगड़ने लगे, तो अमेरिका ने 2013 में अफगानों को आंतरिक सुरक्षा सौंप दी, लेकिन तालिबान का आतंक जारी रहा।
2014-2018 : तालिबान फिर उठाने लगा सिर
मई 2014 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने 2016 तक ज्यादातर अमेरिकी फौज को वापस बुलाने का टाइमटेबल जारी कर दिया। कई सैनिकों की वापसी भी हुई। इससे तालिबान फिर सक्रिय होने लगा। 13 अप्रैल 2017 को अमेरिका ने अफगानिस्तान के नंगरहार प्रांत में इस्लामिक स्टेट के आतंकियों पर सबसे खतरनाक नॉन-न्यूक्लियर बम दागा। तत्कालीन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने वहां और फौज तैनात करने की बात कही।
2018 से 2020 के बीच तालिबान से अमेरिका की शांति-वार्ता और समझौता
2018 में अमेरिका और तालिबान ने शांति-वार्ता शुरू की। खास बात यह कि इसमें अफगान सरकार शामिल नहीं थी। तालिबान ने उससे बात करने से इनकार कर दिया। 29 फरवरी 2020 को कतर की राजधानी दोहा में अमेरिका ने फौज वापसी के लिए तालिबान से समझौता कर लिया। कहने को इस डील में अमेरिका ने दो खास शर्तें भी रखी थीं। पहली- तालिबान हिंसा कम करेगा और दूसरी- तालिबान और अफगान सरकार के बीच बातचीत की शुरुआत होगी, लेकिन राष्ट्रपति जो बाइडेन ने जब अफगानिस्तान से अमेरिकी सेना की पूरी वापसी की घोषणा की तो उसमें इन शर्तों का जिक्र नहीं किया। इसका असर साफ नजर आया। इस ऐलान के कुछ दिनों बाद ही तालिबान पूरी तरह खुलकर मैदान में आ गया।
30 अगस्त 2021 को अमेरिकी सेना ने अफगानिस्तान छोड़ दिया
इस साल अमेरिकी सेना ने टुकड़ों में अफगानिस्तान से रवाना होना शुरू किया। इसके साथ ही तालिबान तेजी से सक्रिय होने लगा। जब अमेरिकी सेना सिर्फ काबुल एयरपोर्ट तक सिमट कर रह गई तो तालिबान ने दो महीने के अंदर ही देश के करीब सभी प्रांतों को अपने कब्जे में ले लिया। अफगानी सेना ने बिना लड़े ही हथियार डाल दिए। 15 अगस्त को राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए।
तालिबान ने देश पर अपनी हुकूमत का ऐलान कर दिया। इसके बाद लोगों ने अफगानिस्तान से भागने के लिए एयरपोर्ट पर भीड़ लगाई। बड़ी संख्या में लोगों को रेस्क्यू किया गया। इस दौरान खुरासान प्रांत के इस्लामिक स्टेट ने काबुल एयरपोर्ट पर फिदायीन हमले किए, जिसका अमेरिका ने एयर स्ट्राइक के जरिए जवाब दिया। आखिरकार देश छोड़ने की डेडलाइन से एक दिन पहले 30 अगस्त को ही अमेरिकी सेना की तालिबान से रवानगी हो गई।
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