अमेरिका और अफगानिस्तान की तालिबान हुकूमत के बीच तल्खियां बढ़ने के संकेत हैं। अमेरिका ने साफ कर दिया है कि तालिबान हुकूमत को अगर दुनिया से मान्यता चाहिए तो उसे अपनी नीतियों और तौर तरीकों में बड़े बदलाव करने होंगे। दूसरी तरफ तालिबान ने कुछ दिन पहले ही साफ कर दिया था कि वो दुनिया के हिसाब से अपनी नीतियां तय नहीं करेगा। तालिबान ने कहा था- हमें मान्यता की उतनी जरूरत नहीं, जितनी दुनिया को हमें स्वीकार करने की है।
अमेरिका ने क्या कहा
अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने रविवार को कहा- अगर तालिबान हुकूमत ये चाहती है कि दुनिया से उसे मान्यता मिले और वो भी दूसरे देशों की तरह हुकूमत चलाए तो उसे शासन चलाने का तरीका और नीतियां बदलनी होंगी। हम चाहते हैं कि ह्यूमन राइट्स की गारंटी दी जाए। लोगों को जिंदगी जीने की पूरी आजादी मिले और आतंकवाद के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। नए साल में हम अफगानिस्तान की इकोनॉमी को मजबूत करने की कोशिश करेंगे, वहां कैश फ्लो बढ़ाए जाने पर विचार चल रहा है।
पाकिस्तान के अखबार ‘द डॉन’ के मुताबिक, अमेरिका ने हाल ही में करीब 280 लाख डॉलर अफगान ट्रस्ट फंड में ट्रांसफर किए हैं। हालांकि, तालिबान हुकूमत इस पैसे का इस्तेमाल नहीं कर पाएगी, क्योंकि इसमें तमाम तरह की शर्तें हैं।
तालिबान का अड़ियल रुख
अमेरिका और भारत समेत दुनिया के कई देश अफगानिस्तान की मानवीय आधार पर मदद कर रहे हैं, लेकिन तालिबान हुकूमत अपना रवैया बदलने को तैयार नहीं दिखती। खामा न्यूज एजेंसी से बातचीत में तालिबान के प्रवक्ता इनामउल्लाह समागनी ने कहा- इस्लामिक एमिरेट्स ऑफ अफगानिस्तान (तालिबान हुकूमत) को मान्यता मिलना अफगानिस्तान की जरूरत नहीं है। इसकी जरूरत तो दुनिया को है, क्योंकि इससे सब को फायदा होगा।
तालिबान 1.0 में किस तरह की सरकार थी?
तालिबान ने 1996-2001 के दौरान अफगानिस्तान पर शासन किया था। उस दौरान तालिबानी सरकार खुद को इस्लामिक एमीरेट कहती थी। हालांकि उस समय तालिबान की सरकार को चंद देशों ने ही मान्यता दी थी, लेकिन करीब 90% अफगानिस्तान पर तालिबान का शासन था।
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