ओपेक देशों के क्रूड ऑयल प्रोडक्शन घटाने के फैसले से अमेरिका नाराज है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, अगले महीने इंडोनेशिया में होने वाली G20 समिट में जो बाइडेन और सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (MBS) की मुलाकात नहीं होगी।
बाइडेन और इसके पहले व्हाइट हाउस ने साफ कर दिया था कि तेल उत्पादक देशों ने 2% प्रोडक्शन कम करने का जो फैसला किया है, वो रूस-यूक्रेन की जंग के हालात में सही नहीं है। इसके बावजूद ओपेक देशों ने अमेरिका की आपत्ति पर ध्यान नहीं दिया।
कम नहीं हुआ तनाव
‘अल-जजीरा’ टीवी चैनल ने एक सीनियर अमेरिकी अफसर के हवाले से कहा- इंडोनेशिया में अगले महीने होने वाली G20 समिट के दौरान बाइडेन का प्रिंस सलमान से मुलाकात का कोई प्लान नहीं है। पिछले हफ्ते जब ओपेक देशों ने क्रूड ऑयल प्रोडक्शन कम करने का फैसला किया था, तब व्हाइट हाउस ने एक बयान में कहा था कि अमेरिका अब सऊदी अरब से रिश्तों पर नए सिरे से विचार करेगा।
अमेरिका के NSA ने रविवार को CNN से इंटरव्यू में कहा था- फिलहाल, दोनों देशों के रिश्तों में कोई बदलाव की उम्मीद नहीं है। ये जरूर है कि प्रेसिडेंट बाइडेन जल्द ही इस बारे में कोई फैसला करेंगे। संसद में इस पर विचार हो सकता है।
महंगा हो जाएगा क्रूड ऑयल
बाइडेन एडमिनिस्ट्रेशन का आरोप है कि ओपेक देशों ने 2% क्रूड ऑयल प्रोडक्शन कम करने का जो फैसला किया है, वो सीधे तौर पर रूस को फायदा पहुंचाएगा। इससे इंटरनेशनल मार्केट में क्रूड ऑयल महंगा होगा और रूस तेल बेचकर लाखों डॉलर कमाएगा। रूस ने खुद भी कहा है कि वो नवंबर तक दो लाख बैरल प्रतिदिन उत्पादन कम करेगा।
सऊदी अरब ने अमेरिका के आरोपों पर हैरानी जताई। कहा- ये आरोप गलत हैं कि हमने प्रोडक्शन कम करने का फैसला इसलिए किया, ताकि इससे रूस को फायदा मिला। प्रोडक्शन कम करने का फैसला सिर्फ ओपेक देशों की इकोनॉमी को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
बाइडेन पर भी दबाव
भारत पर भी पड़ सकता है ओपेक के फैसले का असर
सऊदी अरब का कहना है कि तेल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों को स्थिर रखने के लिए इसके प्रोडक्शन में कटौती की गई है। यह फैसला किसी देश के समर्थन या विरोध से नहीं जुड़ा है, लेकिन इसका असर भारत पर हो सकता है। ऐसा इसलिए क्योंकि भारत अपनी जरूरत को पूरा करने के लिए 80% क्रूड ऑयल का आयात करता है।
ओपेक देश भारत की जरूरत का 60% क्रूड ऑयल सप्लाई करते हैं। इनमें सऊदी अरब, इराक, ईरान वेनेज़ुएला शामिल हैं। ये सभी देश ओपेक के संस्थापक सदस्य हैं। जाहिर है भारत की तेल जरूरतों का अधिकांश हिस्सा इन्हीं देशों से पूरा होता है।
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