विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रमुख डॉ. टेड्रॉस गेब्रयेसस ने कहा है कि कोरोनो के लिए 7 से 8 वैक्सिन पर काम चल रहा है। उन्होंने सोमवार को संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक और सामाजिक परिषद की वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि दो महीने पहले तक ऐसा सोचा जा रहा था वैक्सीन बनाने में 1 साल से 18 महीने लगेंगे। हालांकि, अब इस काम में तेजी लाया जा रहा है। एक हफ्ते पहले दुनिया के 40 देशों के नेताओं ने इसके लिए 8 बिलियन डॉलर(करीब 48 हजार करोड़ रु.) की मदद की है, लेकिन यह इस काम के लिए कम पड़ेगा।
उन्होंने कहा कि कोरोना को लेकर लगाई गई पाबंदिया हटाना मुश्किल और कठिन है। अगर इसे धीरे-धीरे और लगातार हटाया जाए तो इससे जान और रोजगार बचाए जा सकेंगे। संक्रमण की दूसरी लहर देख रहे जर्मनी, दक्षिण कोरिया और चीन जैसे देशों के पास इससे निपटने की सभी प्रणाली मौजूद है। जब तक वैक्सीन उपलब्ध न हो, बचाव के उपाय अपनाना ही वायरस से निपटने का प्रभावी हथियार है।
पाबंदिया हटाने में सावधानी जरूरी: डाॅ. रेयान
डब्ल्यूएचओ के इमरजेंसी प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. माइक रेयान ने कहा, ‘’अब हमें कुछ उम्मीद नजर आ रही है। दुनिया के कई देश लॉकडाउन हटा रहे हैं, लेकिन इसको लेकर ज्यादा सावधानी बरतने की जरूरत है।उन्होंने कहा, ‘‘अगर बीमारी कम स्तर में मौजूद रहती है और इसके क्लसटर्स की पहचान करने की क्षमता नहीं हो तो हमेशा वायरस के दोबारा फैलने का खतरा रहता है। जो देश बड़े पैमाने पर संक्रमण रोकने की क्षमता नहीं होने के बावजूद पाबंदिया हटा रहे हैं, उनके लिए ऐसा करना खतरनाक हो सकता है।’’
‘बेहतर सर्विलांस दोबारा वायरस को फैलने से रोकने में अहम’
रेयान ने कहा कि मुझे उम्मीद है कि जर्मनी और दक्षिण कोरिया नए क्लसटर्स की पहचान कर सकेंगे। इन दोनों देशों में लॉकडाउन हटाने के बाद दोबारा संक्रमण फैल गया है। रेयान ने इन दोनों देशों की निगरानी व्यवस्था की सराहना की। कहा कि बेहतर सर्विलांस वायरस को दोबारा फैलने से रोकने के लिए जरूरी है। हम ऐसे देशों का उदाहरण सामने रखें, जो अपनी आंखें खोल रहे हैं और पाबंदियां हटाने इच्छुक हैं। वहीं, कुछ ऐसे देश भी हैं, जो आंखें मूंदकर इस बीमारी से बचने की कोशिश में हैं।
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