कोरोना महामारी के दौरान जो युवा कॉलेज में पढ़ रहे थे, वे दो साल तक कॉलेज नहीं गए। लिहाजा उनका कोई नया दोस्त नहीं बन पाया। अब ये 26 साल तक के युवा जॉब कर रहे हैं। इसमें से कुछ रिमोट वर्किंग तो कुछ ऑफिस जाने लगे हैं, लेकिन ऑफिस में वे अपने सहयोगियों से कटा हुआ महसूस कर रहे हैं।
फ्रेंडशिप क्राइसिस से गुजर रहे युवा
अपने खालीपन को दूर करने के लिए उन्होंने सोशल मीडिया से फ्रेंड्स बनाना शुरू किया, लेकिन उनसे भी जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रहे हैं। दरअसल, ये युवा फ्रेंडशिप क्राइसिस से गुजर रहे हैं। दोस्त बनाना उन्हें काम जैसा लगने लगा है। वे ज्यादा सामाजिक नहीं हो पा रहे हैं। उनमें दोस्ती का वह भाव विकसित नहीं हो पा रहा है जाे इनसे एक पीढ़ी मिलेनिमल्स (27 से 42 साल के युवा) के लोगों में होता था।
मार्केट रिसर्च एजेंसी टॉक शॉपी के सीनियर रिसर्च मैनेजर जॉयस चुइन्कम कहते हैं कि कोरोना महामारी में लोगों से मेल-जोल घट गया था। नतीजा जेन जी युवा दोस्ती करने के तरीके नहीं सीख पाए। रिश्तों की यह कमी किसी को इमोशनल तौर पर चोट पहुंचा सकती है। जेन जी के लिए समय इससे बुरा नहीं हो सकता।
कई बदलावों से गुजर रहे युवा
वे वर्तमान में अपने जीवन में सबसे ज्यादा बदलावों से गुजर रहे हैं। रिसर्चर का कहना है कि सभी तरह के परिवर्तन युवाओं के लिए जरूरी हैं। इससे उन्हें नई जगहों पर मेल-जोल बढ़ाने में मदद मिलेगी। नए अनुभवों के माध्यम से सीखने के लिए मिलेगा, ताकि वे नए दोस्त बना सकें।
दोस्त ढूंढने के लिए अपना रहे हैं क्रिएटिव तरीका
अब युवा दोस्त ढूंढने के लिए क्रिएटिव तरीका अपना रहे हैं। एप के जरिए दोस्त बना रहे हैं। इसे थर्ड प्लेस या तीसरी जगह बता रहे हैं, क्योंकि इसे काम और घर से अलग, एक वर्चुअल दुनिया कहा जा रहा है। अपने जैसे लोगों के साथ ऑनलाइन चैटिंग करते हैं।
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