कहानी- महाभारत का युद्ध समाप्त हो चुका था। भीष्म पितामह अपने शिविर में बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे। उनके पूरे शरीर पर तीर लगे थे। ऐसे में श्रीकृष्ण पांडवों को लेकर उनके पास पहुंचे।
श्रीकृष्ण चाहते थे कि भीष्म पांडवों को राजधर्म का ज्ञान दें। उसी समय सभी ने देखा कि भीष्म पितामह की आंखों में आंसू थे। ये देखकर पांडवों को आश्चर्य हुआ और उन्होंने श्रीकृष्ण से पूछा, 'आप कहते हैं कि ये बड़े तपस्वी हैं, हम भी जानते हैं कि हमारे पितामह अद्भुत व्यक्ति हैं, लेकिन देखिए अंतिम समय में मृत्यु का चिंतन करके रो रहे हैं। जबकि इन्हें इच्छामृत्यु का वरदान मिला हुआ है।'
श्रीकृष्ण जानते थे कि असली बात क्या है, फिर भी उन्होंने कहा, 'चलो भीष्म पितामह से ही पूछते हैं कि आप मृत्यु के भय से क्यों रो रहे हैं।'
जब श्रीकृष्ण ने ये बात पूछी तो भीष्म ने कहा, 'आप तो मेरे रोने की वजह जानते हैं, लेकिन मैं पांडवों को बताना चाहता हूं कि मेरी आंखों में आंसू मेरी होने वाली मृत्यु की वजह से नहीं हैं, मैं तो कृष्ण की लीला को सोचकर द्रवित हो उठा हूं और मेरी आंखें भीगी गई हैं। मेरे मन में ये विचार आ रहा है कि जिन पांडवों के रक्षक श्रीकृष्ण हैं, उन पांडवों के जीवन में भी एक के बाद एक विपत्तियां आती गईं। भगवान जीवन में होने का ये मतलब नहीं है कि दुख नहीं आएंगे। दुख तो आएंगे, लेकिन भगवान का साथ है, भगवान पर भरोसा है तो वे हमें दुखों से निपटने के लिए अतिरिक्त शक्तियां देंगे। बस यही सोचकर मेरी आंखें भर आई हैं।'
सीख - इस प्रसंग की सीख यह है कि हम पूजा-पाठ करते हैं तो ये उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि हमारे जीवन में दुख और बाधाएं आएंगी ही नहीं, दुख और बाधाएं तो आएंगी, लेकिन भक्ति करने से जो साहस हमें मिलता है, उनकी वजह से ऐसी सभी समस्याएं हम आसानी से हल कर पाते हैं।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.