कहानी
ईश्वरचंद विद्यासागर ज्ञान का भंडार थे और इस वजह से उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी गई थी। जब उन्हें अपनी पहली कमाई मिली तो वे सोने के कंगन बनवाकर अपनी मां के पास पहुंचे।
उनकी माता भगवती देवी ने कंगन देखे तो विद्यासागर ने कहा, 'मां आपको याद होगा। जब मैं छोटा था तो अपने घर एक गरीब महिला कुछ मांगने के लिए आई थी। आपने उसे थोड़े से चावल दिए थे। उस समय मैंने आपसे कहा था कि इससे उसका काम नहीं चलेगा। आपने अपने कंगन उतारकर उसे दे दीजिए। वह उस गरीब महिला के लिए ज्यादा काम का रहेगा। आपने कंगन उतारकर मुझे दे दिए थे।
मैंने उस समय आपसे कहा था कि जब मैं बड़ा हो जाऊंगा तो आपके लिए नए कंगन बनवा दूंगा। आज मैं आपके लिए कंगन ले आया हूं।'
उस समय मां भगवती देवी ने कहा, 'मुझे भी याद है और तुझे भी याद है, लेकिन एक बात तू भूल रहा है। मैंने ये भी कहा था कि जब समर्थ हो जाओ तो गरीबों के लिए दो काम जरूर करना। शिक्षा केंद्र बनाना और उनके स्वास्थ्य के लिए अस्पताल बनवाना। आज तुम बहुत विद्वान हो, समाज सुधारक हो। लोग तुम्हारी बात सुनते हैं। अब मेरी उम्र कंगन पहनने की नहीं है। इन कंगन की जगह तू कलकत्ता में ये दो काम कर दे।'
बाद में ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने ये दोनों काम किए थे।
सीख
मां-बेटे की इस बातचीत में हमारे लिए संदेश है। माता-पिता अगर ऐसे अच्छे विचार रखेंगे तो उनकी संतानें समाज में राष्ट्र में अद्भुत काम करेंगे। संस्कार माता-पिता के आचरण से मिलते हैं, किसी स्कूल-कॉलेज से नहीं मिलते।
Copyright © 2022-23 DB Corp ltd., All Rights Reserved
This website follows the DNPA Code of Ethics.