कहानी - रामायण में हनुमान जी लंका की ओर उड़ रहे थे, उस समय देवताओं ने विचार किया कि हनुमान जी की परीक्षा लेनी चाहिए कि ये लंका जाकर सफल हो पाएंगे या नहीं।
देवताओं ने सर्पों की माता सुरसा को इस काम के लिए भेजा। सुरसा मायावी राक्षसी थी। उसने हनुमान जी को देखा और अपना मुंह बड़ा कर लिया और बोली, 'तुम मेरा भोजन हो।'
हनुमान जी बड़ी विनम्रता से कहते हैं, 'मैं श्रीराम के काम के लिए निकला हूं। उनकी सूचना सीता जी को दे दूं और सीता जी की सूचना श्रीराम को दे दूं। इस काम के बाद मैं आपके पास आ जाऊंगा, आप मुझे खा लेना।'
सुरसा ने हनुमान जी की बात नहीं मानी और रास्ता रोक लिया। सुरसा ने अपना मुंह बहुत बड़ा कर लिया तो हनुमान जी उससे दोगुने बड़े हो गए। तब हनुमान जी ने विचार किया कि मैं बड़ा या ये बड़ी, इस झगड़े में कभी कोई बड़ा नहीं हो पाएगा। मेरा अभियान तो सीता जी की खोज में लंका जाने का है। अगर इस समय मैं इससे लड़ाई करूंगा तो मेरी ऊर्जा और मेरा समय बर्बाद होगा।
ऐसा विचार करके हनुमान जी ने तुरंत अपना आकार बहुत छोटा कर लिया और सुरसा के मुंह में जाकर वापस निकल आए। जब सुरसा ने हनुमान जी को बाहर निकलते हुए देखा तो वह समझ गई और उसने कहा, 'मैं जान चुकी हूं कि तुम में बुद्धि भी है और बल भी है। तुम लक्ष्य को अवश्य प्राप्त करोगे।'
सीख - ये घटना हमें सीख दे रही है कि जब कोई बड़ा लक्ष्य हो तो व्यर्थ की बातों में समय और ऊर्जा नष्ट नहीं करनी चाहिए। हमें छोटी-छोटी बाधाओं में नहीं उलझना चाहिए। हनुमान जी ने हमें बताया है कि जैसे सुरसा के सामने उन्हें अपना लक्ष्य याद था, उसी तरह हमें भी अपने लक्ष्य पर ध्यान लगाना चाहिए।
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