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कहानी - भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी के यहां एक पुत्र का जन्म हुआ, उसका नाम रखा गया था प्रद्युम्न। जब प्रद्युम्न दस दिन का था, तब शंबरासुर नाम के असुर ने बालक का अपहरण कर लिया और उसे समुद्र में फेंक दिया।
शंबरासुर श्रीकृष्ण को सबसे बड़ा शत्रु मानता था। इसी वजह से उसने श्रीकृष्ण के पुत्र को मारने की कोशिश की। श्रीकृष्ण और रुक्मिणी अपने दस दिन के पुत्र की वजह से बहुत परेशान थे। सभी प्रद्युम्न को खोज रहे थे, लेकिन उन्हें कहीं से भी कोई खबर नहीं मिल रही थी।
श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी को समझाया कि हमें धैर्य बनाए रखना है। ये हमारी परीक्षा की घड़ी है। श्रीकृष्ण को राजपाट का काम भी करना होता था। वे घर-परिवार और राज्य के सभी काम भी कर रहे थे और प्रद्युम्न की खोज भी कर रहे थे।
जब शंबरासुर ने बच्चे को समुद्र में फेंका तो एक बड़ी मछली ने उसे निगल लिया था। संयोग से शंबरासुर की रसोई से जुड़े लोगों के जाल में वही मछली फंस गई। जब उस मछली को रसोई में काटा गया तो उसमें से बच्चा निकला। उस समय रसोई में मायावती नाम की एक महिला काम करती थी। उसने बच्चे को अपने पास रख लिया।
मायावती कामदेव की पत्नी रति थी। जब शिवजी ने कामदेव को भस्म किया था, तब रति ने शिवजी से पूछा था कि मेरे पति को शरीर वापस कब मिलेगा? तब शिवजी ने कहा था कि श्रीकृष्ण के पुत्र के रूप में कामदेव का जन्म होगा। मायावती ने जब उस बच्चे को देखा तो वह समझ गई कि ये मेरे पति कामदेव ही हैं।
इसके बाद जब प्रद्युम्न बड़ा हुआ तो उसने शंबरासुर का वध किया और मायावती के साथ श्रीकृष्ण के पास लौट आए।
सीख - इस कथा की सीख यह है कि जीवन में सुख-दुख का आना-जाना लगा रहता है। इसीलिए जब समय मुश्किल हो तो निराश होकर बैठना नहीं चाहिए। घर-परिवार और समाज से जुड़े अपने दायित्वों का पालन करें और साथ ही अपने दुखों को भी सहन करना चाहिए।
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