कहानी - शिवपुराण की कथा है। एक बार विष्णु जी विश्राम कर रहे थे, उस समय ब्रह्मा जी उनके पास पहुंचे। विष्णु जी को सोता हुआ देखकर ब्रह्मा जी को लगा कि ये मेरा अपमान है।
ब्रह्मा जी गुस्सा हो गए और उन्होंने विष्णु जी को भला-बुरा कहना शुरू कर दिया। विष्णु जी ने भी जवाब दिया। हम दोनों में कौन श्रेष्ठ है, इस बात को लेकर दोनों के बीच विवाद बहुत बढ़ गया। झगड़ा इतना बढ़ गया कि दोनों ने अपने-अपने शस्त्र निकाल लिए और युद्ध के हालात बन गए।
युद्ध आरंभ हुआ, दोनों ओर से ऐसे-ऐसे शस्त्र चलाए जा रहे थे कि अगर युद्ध चलता रहा तो ब्रह्मांड समाप्त हो जाएगा, ये सोचकर सभी देवता शिव जी के पास पहुंचे और कहा, 'इस युद्ध को खत्म कराएं।'
शिव जी एक अग्नि स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रकट हुए। अग्नि स्तंभ को देखकर दोनों ने युद्ध रोक दिया और सोचने लगे कि इसकी महिमा जानी जाए तो तय हो जाएगा कि कौन श्रेष्ठ है।
विष्णु जी ने शूकर यानी सूअर का शरीर लेकर उस अग्नि स्तंभ में नीचे से प्रवेश किया। ब्रह्मा जी हंस रूप लेकर ऊपर से प्रवेश कर गए। दोनों उस अग्नि स्तंभ में घूमते रहे, लेकिन उन्हें स्तंभ का ओर-छोर मालूम नहीं चला, उसकी महिमा नहीं जान पाए।
स्तंभ के अंदर ब्रह्मा जी को केतकी नाम का एक फूल मिल गया। विष्णु जी स्तंभ से बाहर आ चुके थे। ब्रह्मा जी ने सोचा कि विष्णु हार गए हैं, पता नहीं लगा पाए, पता तो मैं भी नहीं लगा पाया हूं। ब्रह्मा जी ने केतकी पुष्प से कहा, 'जब हम बाहर निकलेंगे तो तुम मेरी ओर से ये सूचना देना कि मुझे इसका रहस्य मालूम हो गया।'
स्तंभ से बाहर निकलकर केतकी ने ऐसा कर दिया। उसी समय शिव जी वहां प्रकट हुए और उन्होंने ब्रह्मा से कहा, 'अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने के लिए आपने झूठ का सहारा लिया है, अब आपकी कहीं पूजा नहीं होगी। विष्णु आप हर जगह पूजे जाएंगे, क्योंकि आपने सच का साथ दिया है।'
सीख - प्रतिस्पर्धा होना अच्छी बात है, लेकिन दूसरों को हराने के लिए गलत रास्ते का या झूठ का सहारा नहीं लेना चाहिए। झूठ एक दिन बुरे परिणाम देता ही है।
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