कहानी- महाभारत युद्ध के बाद अश्वथामा ने उत्तरा के गर्भ पर ब्रह्मास्त्र का प्रहार किया था। उत्तरा अभिमन्यु की विधवा थी। अभिमन्यु युद्ध में मारे जा चुके थे। अभिमन्यु श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा के बेटे थे। अर्जुन उनके पिता थे।
जब ब्रह्मास्त्र का प्रहार हुआ तो उत्तरा दौड़ती हुई श्रीकृष्ण के पास पहुंची और अपनी रक्षा करने का निवेदन किया। श्रीकृष्ण अपनी माया से उत्तरा के गर्भ में प्रवेश कर गए। वहां उन्होंने चतुर्भुज रूप धारण किया और ब्रह्मास्त्र को बेअसर कर दिया। गर्भ में पल रहा शिशु ये सब देख रहा था।
कुछ समय बाद उत्तरा के गर्भ से बच्चे का जन्म हुआ। बच्चे ने आंखें खोलीं और जो-जो लोग उसके सामने खड़े थे, बच्चा उनका परीक्षण करने लगा कि वह कौन था, जिसने गर्भ में चतुर्भुज स्वरूप में मेरी रक्षा की थी। लोगों का परीक्षण करने की वजह से उस शिशु का नाम परीक्षित रखा गया।
सीख - ये प्रसंग हमें समझा रहा है कि गर्भ में पल रहे शिशु के साथ जो भी घटनाएं होती हैं, वो जन्म लेने के बाद भी अपना प्रभाव रखती हैं। इसीलिए महिलाओं को गर्भावस्था के समय अपने आचरण पर बहुत ज्यादा ध्यान रखने की सलाह दी जाती है। अगर महिला तनावग्रस्त है, अनुशासित नहीं है, आचरण अच्छा नहीं है तो ये बातें गर्भ में पल रहे शिशु पर बुरा असर डाल सकती हैं। इस अवस्था में महिलाओं को बहुत सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।
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