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कहानी- घटना महाभारत के उस समय की है, जब द्रोणाचार्य कौरव और पांडव राजकुमारों को एक साथ शिक्षा देते थे। एक दिन गुरु ने शिष्यों को एक विषय दिया और कहा, ‘इस पाठ को आत्मसात करना है और याद करके कल आना।’
यहां आत्मसात शब्द का अर्थ है जीवन में, अपने आचरण में उतारना। अगले दिन पढ़ाई शुरू हुई तो द्रोणाचार्य ने पूछा, ‘कौन-कौन कल का पाठ याद करके आया है?’
युधिष्ठिर के अलावा सभी ने हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने युधिष्ठिर से पूछा, ‘तुमने हाथ क्यों नहीं उठाया, क्या तुमने पाठ याद नहीं किया है?’
युधिष्ठिर ने कहा, ‘हां मुझे अभी तक ये विषय याद नहीं हुआ है।’ द्रोणाचार्य हैरान थे कि युधिष्ठिर तो सबसे बुद्धिमान है, फिर इसने पाठ याद क्यों नहीं किया? गुरु ने कहा, ‘ठीक है कल याद करके आना।’
दस दिन बीत गए, लेकिन युधिष्ठिर उसी विषय पर अटके थे। जबकि अन्य राजकुमार 10 दिनों के 10 पाठ याद कर चुके थे।
द्रोणाचार्य ने युधिष्ठिर से पूछा, ‘क्या बात है, तुम ये पाठ याद क्यों नहीं कर पा रहे हो?’
युधिष्ठिर ने कहा, ‘गुरुदेव, जैसे मेरे भाई पाठ याद कर रहे हैं, अगर वैसे ही याद करना है तो इसमें कोई समस्या नहीं है। लेकिन, आपने कहा था कि आत्मसात करना है और आपका पाठ था सत्य। सत्य को जीवन में उतारने में मुझे बहुत दिक्कत हो रही है। जब तक मैं इसे आत्मसात नहीं कर लूंगा, तब तक मैं कैसे बोल सकता हूं कि मैंने पाठ याद कर लिया है।’
ये बातें सुनकर द्रोणाचार्य बहुत खुश हुए। वे समझ गए कि भविष्य में ये धर्मराज बनेगा।
सीख- हम कई अच्छी बातें पढ़ते हैं, सुनते हैं और समझ भी लेते हैं, लेकिन इन बातों को आचरण में नहीं उतारते हैं। ऐसी ही एक बात है सत्य को अपनाना। सत्य का संबंध सिर्फ बोलने से नहीं है। मन, वचन और कर्म में एक समान होना ही सत्य को आत्मसात करना है। इसका सरल अर्थ यह है कि हमें विचारों में, बोलने में और कर्म करने में सच्चाई का साथ देना है।
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