कहानी - संतों की एक यात्रा चल रही थी। संतों के समूह में अधिकतर संत महाराष्ट्र के थे। सभी रामेश्वरम् जा रहे थे, क्योंकि उन्हें ज्योतिर्लिंग पर जल चढ़ाना था।
भगवान का जलाभिषेक करने के लिए सभी साधु-संतों ने अपने-अपने कमंडल में पानी भर रखा था। सभी अपने-अपने क्षेत्रों की पवित्र नदियों से, अपने-अपने घरों से जल लेकर आए थे, उनका संकल्प था कि इस जल को रामेश्वर के ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाना है। संत बहुत सावधानी से जल लेकर यात्रा कर रहे थे।
यात्रा के दौरान एक रेतीले स्थान पर एक गधा तड़प रहा था, उसे देखकर संतों को ये भी समझ आ गया था कि इसे बहुत प्यास लगी है। प्यासा होने की वजह से वह मरने की स्थिति में पहुंच गया था। सभी संतों को बहुत दया आई, लेकिन आसपास कहीं पानी भी नहीं था। वहां न कोई नदी थी, न कोई तालाब, जहां से पानी लेकर उस गधे को पिला सकें।
संतों के पास जो जल था, उसे रामेश्वरम् में चढ़ाना था तो वह पानी तो गधे को पिला नहीं सकते थे। साधुओं के उस समूह में संत एकनाथ जी भी थे। उन्होंने अपने कलश का गंगाजल उस गधे को पिला दिया।
सभी साधुओं ने एकनाथ जी को टोका, 'आप ये क्या कर रहे हैं, ये गंगाजल है, इसे रामेश्वरम् ज्योतिर्लिंग पर चढ़ाने के लिए लेकर आए थे और आप इस गधे को ये जल पिला रहे हैं।'
एकनाथ जी ने कहा, 'आप लोगों को ये गधा दिख रहा है, एक पशु दिख रहा है, लेकिन मुझे ऐसा लग रहा है भगवान शिव कह रहे हैं कि इस समय इस जल का यही सही उपयोग है, ये पानी इस जीव के काम आ जाए। मैं तो यही मान रहा हूं कि यही मेरा अभिषेक है।'
सीख - इस प्रसंग की सीख यह है कि सबसे बड़ी पूजा है प्राणियों की सेवा करना। पूजा-पाठ करना अच्छी बात है, लेकिन हमारी पूजन सामग्री किसी जरूरतमंद व्यक्ति के काम आ जाए तो ये भी भगवान की पूजा करने जैसा ही है। हमारी पूजा सामग्री से किसी व्यक्ति की कोई जरूरत पूरी हो रही हो तो उसे वह सामग्री दे देनी चाहिए।
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