कहानी- संत ज्ञानेश्वर से जुड़ा किस्सा है। वे सभी लोगों से कहा करते थे कि परमात्मा सभी प्राणियों में वास करते हैं और वे सभी के भीतर एक जैसे ही हैं। अगर आप किसी का अपमान कर रहे हैं तो ये मान लें कि आप परमात्मा का अपमान कर रहे हैं। अगर मैं ईश्वर को पूजना चाहता हूं तो मुझे सबसे पहले खुद के अंदर उन्हें पूजना चाहिए और फिर वही ईश्वर मैं दूसरों में खोजूं।
आम लोगों को संत ज्ञानेश्वर की ये बातें समझ नहीं आती थीं, लेकिन जो कुटिल लोग थे, वे इन बातों पर आपत्ति लेते थे। इनके पिता संन्यासी थे, लेकिन बाद में उन्होंने गृहस्थ जीवन अपना लिया था। एक दिन संत ज्ञानेश्वर अपने भाई निवृत्तिनाथ, सोपान और बहन मुक्ताबाई के साथ पैठन (महाराष्ट्र) गए हुए थे।
पैठन के विद्वानों से ज्ञानेश्वर जी को स्वीकृति लेनी थी कि जो पूजा-पाठ वे कर रहे हैं, वह सही है या नहीं? किसी ने उनकी परीक्षा लेने के लिए कहा, 'ये जो सामने भैंस खड़ी है, इसमें और हममें क्या अंतर है? क्या इसमें भी परमात्मा बसता है?'
ज्ञानेश्वर जी ने कहा, 'हां।'
ये सुनते ही उस व्यक्ति ने भैंस को कोड़े मारने शुरू कर दिए और कहा, 'अब ये कोड़े किसे लग रहे हैं?'
वहां खड़े लोग आश्चर्यचकित हो गए, क्योंकि ज्ञानेश्वर की पीठ पर कोड़े के निशान थे और खून बह रहा था। सभी ज्ञानी लोग और सामान्य लोगों ने ज्ञानेश्वर जी को प्रणाम किया और कहा, 'आप सही कहते हैं, अगर भाव दृढ़ हों तो परिणाम ऐसे ही आते हैं।'
सीख- अमीर-गरीब और स्त्री-पुरुष का भेदभाव तभी खत्म हो सकता है, जब हम ये बात समझ लेंगे कि परमात्मा के लिए सभी समान हैं और भगवान सभी में एक समान ही वास करते हैं।
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