कहानी
महाभारत में अर्जुन और गंधर्वराज चित्ररथ का युद्ध हुआ था। युद्ध में अर्जुन की जीत हुई थी। बाद में अर्जुन ने चित्ररथ से पूछा, 'आप हमसे हार कैसे गए?'
चित्ररथ ने कहा, 'आपके परिवार पर पुरोहितों की कृपा है।'
दोनों की बातचीत हो रही थी, उस समय गंधर्वराज ने अर्जुन को तप्ति नंदन कह दिया। अर्जुन ने पूछा, 'आप मुझे तप्ति नंदन क्यों कह रहे हैं?'
गंधर्वराज ने कहा, 'सूर्यदेव की एक पुत्री थी तप्ति। आपके वंश में संवरण नाम के एक राजा हुए। संवरण ने एक बार तप्ति को देखा तो उनकी तप्ति से विवाह करने की इच्छा हो गई, लेकिन वह सूर्यदेव की पुत्री थी। सूर्यदेव तक अपनी बात पहुंचाने के लिए संवरण ने अपने गुरु वशिष्ठ जी को पूरी बात बताई। वशिष्ठ जी ने सूर्यदेव से बात की। इसके बाद संवरण और तप्ति का विवाह हो गया।
गंधर्वराज ने आगे कहा, 'उस दिन सभी को मालूम हो गया कि जिस वंश के पास गुरु, पुरोहित और ब्राह्मणों का आशीर्वाद है, जो वंश विद्वानों का सम्मान करता है, उस वंश के रुके हुए सभी काम पूरे हो जाते हैं। आपके पितृ पुरुष संवरण के लिए वशिष्ठ जी ने सूर्यदेव से बात की थी। आप युद्ध में मुझसे जीते भी इसीलिए हैं, क्योंकि आपके साथ उनका आशीर्वाद है।'
सीख
गंधर्वराज चित्ररथ ने अर्जुन को जो बातें बताई हैं, उनमें हमारे लिए ये संदेश है कि जिन लोगों के साथ गुरु, विद्वान, साधु-संतों और बड़े लोगों का आशीर्वाद होता है, उनके सभी काम पूरे हो जाते हैं।
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