कहानी - लंदन में एक कमरे में दो युवक पढ़ रहे थे। एक का नाम था असनाडेकर और दूसरे का नाम था भीमराव अंबेडकर। असनाडेकर देखते थे कि भीमराव हमेशा पढ़ते रहते हैं और खाना भी बहुत कम समय में खा लेते हैं।
भीमराव अंबेडकर अपनी दैनिक दिनचर्या के कामों के अलावा सिर्फ पढ़ाई करते थे। एक बार आधी रात में असनाडेकर की नींद खुली तो उन्होंने देखा कि भीमराव अभी भी डूबकर पढ़ रहे हैं। तब असनाडेकर ने पूछा, 'भैया भीमराव, कितनी देर और पढ़ोगे? अब तो आधी रात बीत चुकी है। मेरे हिसाब से आपको सो जाना चाहिए।'
भीमराव बोले, 'भैया, मेरे पास दो बातों के लिए समय नहीं है। पहली, नींद और दूसरी है मौज-मस्ती। रहा सवाल खाने का तो उसके लिए मेरे पास बहुत ज्यादा पैसे नहीं हैं, जो खाने पर अधिक समय दूं। इसलिए मैंने निर्णय लिया है कि विद्यार्थी जीवन में एक-एक पल विद्या अध्ययन को अर्पित कर दूं।'
इतना कहकर भीमराव ने फिर से पढ़ना शुरू कर दिया और असनाडेकर सो गए।
सीख - अंबेडकर जी ने हमें ये सीख दी है कि एक विद्यार्थी के लिए सबसे बहुमूल्य है समय। एक-एक पल का उपयोग अध्ययन के लिए करना चाहिए। मौज-मस्ती से विद्या नहीं आती। कुछ त्यागना पड़ता है, तब हमें विद्या मिलती है।
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