कहानी - गोपाल कृष्ण गोखले जी ने भारत सेवक समाज (सर्वेंट्स ऑफ इंडिया सोसायटी) की स्थापना की थी। गोखले जी का सभी बहुत सम्मान करते थे। इसलिए काफी लोग इस संस्था में सदस्य बनना चाहते थे।
गोखले जी अनुशासन प्रिय थे, उन्होंने कहा था कि सदस्यता उन्हीं लोगों को दी जाएगी जो हमारे मापदंड पर खरे उतरेंगे। एक डॉ. देव थे, उन्होंने गोखले जी से कहा, 'बंबई के मुनिसिपल कॉर्पोरेशन के एक वरिष्ठ इंजिनियर ने निवेदन किया है कि उन्हें अपनी संस्था में सदस्य बनाया जाए तो मैं उनकी सिफारिश कर रहा हूं।'
गोखले जी बोले, 'डॉ. देव मैं आपको जानता हूं और आपका सम्मान भी करता हूं, लेकिन जिन इंजिनियर साहब का आप जिक्र कर रहे हैं, उन्हें सदस्य तभी बनाया जा सकता है, जब वे नौकरी छोड़ देंगे। नौकरी के साथ यहां रहकर देश सेवा कर पाना संभव नहीं है।'
वह इंजीनियर सोच रहे थे कि पहले सदस्यता मिले, इसके बाद नौकरी छोड़ दूं। इंजीनियर ने बहुत दबाव बनाया, डॉ. देव ने भी निवेदन किया, लेकिन गोखले जी नहीं माने। अंत में जब उस इंजीनियर से इस्तीफा दिया, तब उन्हें संस्था की सदस्या दे दी गई।
लोगों ने गोखले जी से इस बारे में पूछा था तो वे बोले थे कि कोई भी संस्था अपने सदस्यों के आचरण और नीयत से चलती है। अगर प्रारंभ में ही हमने इस पर ध्यान नहीं दिया तो संस्था अपने उद्देश्य से भटक जाएगी।
सीख - अगर कोई व्यक्ति अपने निजी स्वार्थ की पूर्ति के लिए किसी संस्था में प्रवेश करता है तो वह संस्था अपने उद्देश्यों से भटक सकती है। सदस्यों के आचरण का असर पूरी संस्था पर होता है।
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