कहानी - देवी पार्वती शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थीं और इसके लिए वे तप कर रही थीं। पार्वती जी की तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी भी दूसरा विवाह करने के लिए तैयार हो गए थे।
विवाह से पहले शिव जी देवी पार्वती की परीक्षा लेना चाहते थे कि देवी के मन में मेरे लिए कैसा और कितना दृढ़ भाव है।
शिव जी ने सप्त ऋषियों से कहा, 'आप जाकर पार्वती जी की परीक्षा लीजिए।'
प्रेम की परीक्षा लेने के लिए सप्त ऋषि देवी के पास पहुंच गए। पार्वती जी को तप करते देख सप्त ऋषियों ने पूछा, 'आप किसके लिए इतना कठोर तप कर रही हैं?'
पार्वती जी ने कहा, 'मेरा मूर्खतापूर्ण उत्तर सुनकर आपको हंसी आएगी, लेकिन बस मेरे मन ने हठ पकड़ ली है, बिल्कुल ऐसे जैसे पानी दीवार पर चढ़ना चाहता हो, नारद मेरे गुरु हैं और उन्होंने कहा है कि मुझे पति के रूप में शिव जी को प्राप्त करना चाहिए और मैं शिव जी को पाने के लिए तप कर रही हूं।'
सप्त ऋषियों ने कहा, 'नारद के कहने से आज तक क्या किसी का घर बसा है? और तुम शिव जैसा पति चाहती हो। नारद किसी से भी मांगकर खा लेते हैं, आराम से रहते हैं, उन्हें किसी बात की कोई चिंता नहीं है। क्या कोई स्त्री पत्नी के रूप में उनके जीवन में टिक सकती है? हमारी बात मानो, हमने तुम्हारे लिए वैकुंठ का स्वामी बड़ा सुंदर वर चुना है।'
पार्वती कहती हैं, 'मेरे पिता हिमाचलराज हैं, मेरा शरीर पर्वत से बना है। मैंने जो हठ पकड़ लिया है, वह अब छूटेगा नहीं। सोना भी पत्थर से ही बनता है। जब उसे जलाया जाता है तो वह अपना स्वभाव नहीं छोड़ता है। मैंने अपने गुरु के वचन पर विश्वास किया है। मैं तप करके शिव जी को पति के रूप में प्राप्त करूंगी।'
सप्त ऋषि देवी को आशीर्वाद देकर चले गए। इसके बाद शिव-पार्वती का विवाह हुआ।
सीख - पार्वती जी के तप ने हमें दो बातें समझाई हैं। पहली, जो निर्णय करो, उस पर टिके रहो। किसी के बहकावे नहीं आओ। दूसरी बात, अपने गुरु की बातों पर भरोसा करना चाहिए। तभी जीवन में सुख-शांति और सफलता मिलती है।
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