कहानी
देवर्षि नारद को अपनी तपस्या का अहंकार हो गया था। नारद मुनि का अहंकार दूर करने के लिए भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक राजकुमारी के स्वयंवर की रचना की।
नारद मुनि विष्णु जी की माया में फंस गए और उस राजकुमारी से विवाह करने के लिए तैयार हो गए। नारद जी ने विष्णु जी से सुंदर रूप मांगा तो भगवान ने उन्हें बंदर का रूप दे दिया। नारद मुनि इसी रूप में स्वयंवर में पहुंच गए।
राजकुमारी ने नारद मुनि की ओर ध्यान ही नहीं दिया, उसी समय वहां भगवान विष्णु पहुंचे तो राजकुमारी ने उन्हें वरमाला पहना दी। ये देखकर नारद मुनि बहुत गुस्सा हो गए और विष्णु जी को शाप दे दिया। स्वयंवर में शिव जी ने नारद मुनि की स्थिति देखने के लिए अपने दो गण जय-विजय को भी भेजा था। जय-विजय ने ही नारद मुनि को बताया था कि उनका मुंह बंदर की तरह है। जय-विजय ने नारद जी का मजाक उड़ाया तो नारद जी ने इन दोनों को भी असुर होने का शाप दे दिया।
कुछ देर बाद जब विष्णु जी ने अपनी माया हटाई तो नारद जी को समझ आ गया कि विष्णु जी ने मेरा घमंड तोड़ने के लिए, मुझे समझाने के लिए ये माया रची थी।
नारद मुनि का घमंड टूटने के बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हो गया और उन्होंने भगवान विष्णु से अपने किए की क्षमा मांगी। साथ ही शिव जी के उन दो गणों को भी क्षमा कर दिया।
नारद मुनि ने जय-विजय से कहा, 'मैंने माया में फंसकर आप दोनों को शाप दिया है, इस कारण आप दोनों को असुर बनाना होगा। आपका जन्म विश्रवा मुनि के यहां होगा, रावण और कुंभकर्ण आपका नाम होगा। शिव जी के भक्त रहोगे। बाद में विष्णु जी अवतार श्रीराम के हाथों आपकी मृत्यु होगी।'
नारद मुनि ने जय-विजय को उनके मजाक के लिए क्षमा किया और फिर अपने शाप के लिए क्षमा भी मांगी।
सीख
नारद मुनि का चरित्र हमें संदेश दे रहा है कि अगर हम भ्रम में या अहंकार में फंसकर किसी का अहित कर देते हैं और बाद में जब भी हमारा अहंकार दूर होता है तो सबसे पहले हमें उन लोगों से क्षमा मांगनी चाहिए, जिन लोगों का हमने अहित कर दिया था। आवेश में हम ऐसे काम कर देते हैं जो हमें नहीं करना चाहिए। जब हमारा आवेश दूर हो और हमें अपनी गलती का अहसास हो जाए तो उन लोगों से क्षमा जरूर मांगे, जिनका हमारी वजह से नुकसान हो गया था।
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