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कहानी - महर्षि वेद व्यास ने महाभारत जैसे विशाल ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में एक लाख श्लोक हैं। कहा जाता है कि जो कुछ इस संसार में है, वह सब महाभारत में है। और, जो महाभारत में नहीं है, वह संसार में भी नहीं है।
महाभारत की रचना के बाद व्यासजी दुखी हो गए थे। एक दिन वे अपने आश्रम में उदास बैठे हुए थे, तभी उनके पास देवर्षि नारद पहुंचे। नारदमुनि ने कहा, ‘क्या बात है, आज आप निराश दिख रहे हैं?’
व्यासजी बोले, ‘यही बात मैं आपसे पूछना चाहता हूं। मैंने महाभारत जैसे ग्रंथ की रचना की है। ऐसे सृजन के बाद मन में शांति होनी चाहिए, लेकिन मेरा मन अशांत है। आप ही बताएं, इसकी क्या वजह है?’
नारदमुनि ने कहा, ‘ये तो होना ही था। आपने जो ग्रंथ रचा है, उसमें भाई-भाई की लड़ाई है। युद्ध है, नरसंहार है। अशांति है। कुटिलताएं हैं। ऐसा ग्रंथ पढ़ने के बाद क्या शिक्षा मिलेगी? आप कोई ऐसा ग्रंथ लिखें, जिसके नायक परमात्मा हों, जिसकी गतिविधियां संदेश दे रही हों, जिसमें सकारात्मक सोच हो।’
इसके बाद व्यासजी ने श्रीमद् भागवत पुराण की रचना की। इस ग्रंथ के हर एक अध्याय, प्रसंग के अंत में जीवन प्रबंधन के संदेश हैं। इसीलिए कहते हैं कि भागवत पढ़ने के बाद शांति मिलती है।
सीख - इस प्रसंग की सीख ये है कि हमें किसी भी काम की शुरुआत भगवान को ध्यान में रखकर करनी चाहिए। काम के अंत में शांति मिलनी चाहिए। काम करते समय परमात्मा को केंद्र में जरूर रखें। सकारात्मक सोच बनाए रखें। नकारात्मकता और बुरे लोगों से बचें। ध्यान रखें, अच्छे कामों से शांति मिलती है और बुरे कामों से दुख मिलता है।
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