कहानी - महाभारत में महाराजा पांडु को शिकार खेलने का शौक था। एक बार वे अपनी दोनों पत्नियों कुंती और माद्री के साथ शिकार खेलने गए। उन्होंने देखा कि हिरण और हिरणी का एक जोड़ा प्रेम कर रहा है। दोनों एकांत में थे।
महाराजा पांडु में बाण निकाले और हिरण-हिरणी की ओर छोड़ दिए। बाण लगते ही हिरण-हिरणी गिर गए। उस समय हिरण के मुंह से एक पुरुष की आवाज निकली। वह हिरण के ऋषि पुत्र थे, जिनका नाम किंदम था। किंदम और उनकी पत्नी हिरण-हिरणी बनकर प्रेम कर रहे थे और पांडु ने उन्हें बाण मार दिए।
हिरण ने पुरुष की आवाज में कहा, 'तुम धर्म में रुचि लेने वाले राजा हो, आज तुमने ये क्या कर दिया। जब हम प्रेम कर रहे थे, तब तुमने हम पर बाण छोड़ दिए। मैं तुमको शाप देता हूं कि तुम्हारे जीवन का समापन भी ऐसी ही अवस्था में होगा। तुमने हमारा एकांत भंग किया है, एक दिन ऐसा ही एकांत तुम्हारी मृत्यु का कारण बनेगा।'
पांडु समझ गए कि ये ऋषि का शाप है तो सत्य होकर ही रहेगा। उन्होंने विचार किया कि अब से वे आगे का जीवन जंगल में ही बिताएंगे, राजपाठ छोड़ देंगे। ये बात उनकी पत्नियों को मालूम हुई तो कुंती ने कहा, 'हम भी जंगल में ही रहेंगे, हस्तिनापुर नहीं जाएंगे। संन्यास के अलावा और भी तो आश्रम हैं, जहां आप पत्नियों के साथ रहकर तपस्या कर सकते हैं।'
ये बात पांडु ने मान ली और जंगल में ही वानप्रस्थ जीवन बिताने लगे और अपने अपराध का प्रायश्चित करने लगे। उन्होंने सारी संपत्तियां और सैनिकों को हस्तिनापुर रवाना कर दिया।
सीख - गलती या अपराध किसी से भी हो सकते हैं। अपराध को मिटाया नहीं जा सकता, लेकिन उसका प्रायश्चित किया जा सकता है, ताकि अपराध का बोझ मन से उतर जाए और आगे का जीवन अच्छा हो जाए। तपस्या और भक्ति करने के लिए घर छोड़ने की जरूरत नहीं है। घर-परिवार में अनुशासन के साथ रहकर भी तपस्या की जा सकती है। इसे ही वानप्रस्थ कहा जाता है।
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