कहानी- महाभारत में युधिष्ठिर महाराजा बन चुके थे। उस समय एक घटना घटी। एक ब्राह्मण के पिता का देहांत हो गया। ब्राह्मण ने विचार किया कि मुझे मेरे पिता का दाह संस्कार चंदन की लकड़ी पर करना चाहिए, लेकिन उसे चंदन की लकड़ियां कहीं मिली नहीं।
ब्राह्मण युधिष्ठिर के पास पहुंच गया और कहा, 'मुझे चंदन की लकड़ियां चाहिए, क्योंकि मुझे मेरे पिता का दाह संस्कार करना है।'
युधिष्ठिर के पास कमी तो कुछ नहीं थी, लेकिन उन्होंने कहा, 'बारिश की वजह से चंदन की सारी लकड़ियां भीग चुकी हैं, भीगी हुई लकड़ियों से दाह संस्कार नहीं हो पाएगा।'
ये सुनकर ब्राह्मण निराश हो गया। इसके बाद वह कर्ण के पास पहुंचा। कर्ण के पास की लकड़ियां भी लगातार बारिश की वजह से भीग चुकी थीं। ये बात जानकर ब्राह्मण जाने लगा तो कर्ण ने उसे रोका और कहा, 'मेरे द्वार से कोई व्यक्ति खाली हाथ नहीं जा सकता है। मेरा राज सिंहासन चंदन की लकड़ी से ही बना है, वह सूखा भी है।'
कर्ण ने कारीगरों को बुलाया और कहा, 'इसमें से लकड़ियां निकालकर इस ब्राह्मण को दे दो।' कारीगरों ने लकड़ियां निकालकर ब्राह्मण को दे दीं और उसने अपने पिता का दाह संस्कार चंदन की लकड़ियों से कर दिया।
उस समय से चर्चा होने लगी थी कि दानवीर होने का अर्थ युधिष्ठिर है या कर्ण है। चंदन की लकड़ियों का सिंहासन युधिष्ठिर के पास भी था, लेकिन वे उस समय सोच नहीं सके। उदारता और दूरदर्शिता के मामले में वे कर्ण से पीछे रह गए।
सीख - जब किसी को दान देना हो तो स्थान, पात्र और काल पर गहराई से चिंतन करना चाहिए। किसको देना है, किस समय देना है और कहां देना है? इन बातों का ध्यान रखेंगे तो हम किसी जरूरतमंद की मदद बहुत अच्छी तरह से कर पाएंगे।
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