कहानी
रामायण में राजा दशरथ ये तय कर चुके थे कि अब राम को राजा बनाना है। राज तिलक से पहले वाली रात में दशरथ अपनी रानी कैकयी के महल में गए। कैकयी को राम से बहुत स्नेह था और वह राजा दशरथ से हमेशा कहती रहती थी कि राम को राजा बना देना चाहिए।
दशरथ कैकयी के पास पहुंचे, उससे पहले मंथरा ने कैकयी की बुद्धि फेर दी थी। जब राजा पहुंचे तो कैकयी ने दो पुराने वरदान मांग लिए, भरत को राज्य और राम को वनवास।
दशरथ ने कैकयी से कहा, 'राम तो बहुत सहज है और वह भरत को राजा बनाने से प्रसन्न होगा तो उसे वन क्यों भेज रही हो?'
कैकयी ने दशरथ की बात नहीं मानी और अपनी जिद पर अड़ी रही। राम को बुलवाया गया। जब राम दशरथ और कैकयी के पास पहुंचे तो देखा कि पिता बदहाल से हैं और मां कैकयी गुस्से में हैं। राम ने इसकी वजह पूछी तो कैकयी ने कहा, 'तुम्हारे पिता को मेरे दो वचन पूरे करने हैं। ये वचन तुमसे संबंधित हैं। तुम्हारे पिता इसी वजह से दुखी हैं।'
राम ने कहा, 'मेरी वजह से मेरे माता-पिता दुखी हो जाएं तो ये मेरे लिए अच्छी बात नहीं है। आप बताइए मुझे क्या करना है?'
कैकयी ने कहा, 'राजा भरत को बनाना है और तुम्हें 14 वर्षों के लिए तपस्वी बनकर वनवास जाना होगा।'
ये बात सुनकर राम जी ने मुस्कान के साथ कहा, 'इतनी सी बात पर मेरे पिता इतने दुखी हो गए। भरत राजा बनेगा ये तो बहुत अच्छी बात है। अगर मुझे मेरे माता-पिता की आज्ञा का पालन करने का अवसर मिल जाए तो ये मेरा सौभाग्य होगा। वन में मुझे कई ऋषि-मुनियों के दर्शन मिलेंगे। अलग-अलग लोगों से मुलाकात होगी। मैं आपकी आज्ञा का पालन करने के लिए तैयार हूं।'
उस समय दशरथ ने कहा, 'ये राम है, किसी भी स्थिति में विचलित नहीं होता है।'
सीख
राम ने यहां हमें ये सीख दी है कि हालात अच्छे हों या बुरे, हमें सहज रहना चाहिए। हमें जीवन में अगर कुछ मिलता है तो हम बहुत ज्यादा उत्साही हो जाते हैं। जब कुछ छीन जाता है तो हम पागल हो जाते हैं। यहां राम दोनों ही स्थितियों में सहज थे। हमें भी विपरीत परिस्थितियों में ये देखना चाहिए कि इसमें हमारे लिए अच्छा क्या है।
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