कहानी
देवताओं और असुरों में युद्ध हो रहा था। उस समय देवताओं की मदद के लिए भगवान ने उनसे कहा, 'आप लोग समुद्र मंथन करें और उसमें औषधियां डालें, ऐसा करने से समुद्र से अमृत निकलेगा। देवता अमृत पी लेंगे तो युद्ध जीत जाएंगे।'
समुद्र मंथन करने की तैयारियां शुरू हुईं तो मंदराचल की मथनी बनाई गई। इसके बाद प्रश्न उठा कि वो कौन सी रस्सी होगी, जिसका एक सिरा देवता पकड़ेंगे और दूसरा सिरा दैत्य पकड़ेंगे। इसके बाद मंदराचल मथनी को घुमाएं। ऐसी रस्सी कहीं मिल नहीं रही थी।
तब देवताओं ने वासुकि नाग से कहा, 'आप रस्सी बन जाइए।'
वासुकि ने देवताओं की बात मान ली। इसके बाद वासुकि नाग को मंदराचल पर्वत पर लपेटा गया। वासुकि की मदद से समुद्र मंथन हो गया।
सभी देवता वासुकि को लेकर ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और कहा, 'इन्होंने हमारी मदद की है। इनके मन में एक भय है। इनकी मां ने इन्हें एक शाप दिया था। वही शाप इन्हें दुख दे रहा है। आप इस शाप को खत्म कर दीजिए। ये हमारे हितैषी हैं।'
ब्रह्मा जी बोले, 'मैं जानता हूं कि वासुकि बहुत परेशान हैं, लेकिन इन्होंने अच्छा काम किया है, देवताओं की मदद की है तो भविष्य में इनका भला ही होगा। मैं आशीर्वाद देता हूं कि एक जरत्कारु नाम के ब्राह्मण तपस्या में लगे हुए हैं। वासुकि की एक बहन, जिनका नाम भी जरत्कारु ही है, इन दोनों का विवाह होगा और वासुकि के जीवन से शाप का भय खत्म हो जाएगा। मैं इन्हें शांति का वरदान देता हूं।'
सीख
इस किस्से की सीख यह है कि हमें अच्छे काम करते रहना चाहिए। ऐसा करने से परिणाम में भी शांति मिलती है। शुभ काम का परिणाम भी शुभ होता है। वासुकि ने देवताओं की मदद की तो ब्रह्मा जी ने वासुकि का दुख दूर कर दिया। हम जब-जब अच्छे लोगों की मदद करते हैं, तब-तब हमारे जीवन में कुछ न कुछ अच्छा जरूर होता है।
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