कहानी
स्वामी विवेकानंद से जुड़ा किस्सा है। एक दिन किसी व्यक्ति ने स्वामी जी से पूछा, 'आप संन्यासी हैं, वैरागी हैं और आप ही कहते हैं कि धन कमाओ। हमें ये बात समझ नहीं आती है।'
विवेकानंद जी ने कहा, 'मैं दो प्रकार का धन कमाने की बात कहता हूं।'
उस व्यक्ति ने पूछा, 'दो प्रकार का धन कैसा होता है?'
विवेकानंद जी ने कहा, 'एक धन तो वो है, जिससे संसार चलता है और दूसरा धन वह होता है, जिससे हमारा चरित्र चलता है।'
इसके बाद स्वामी जी ने एक कहानी सुनाई। एक व्यापारी अपने नौकर के साथ जानवरों की मंडी में ऊंट खरीदने गया। उसने एक ऊंट पसंद किया और उसे खरीदकर अपने घर लेकर आ गया। व्यापारी ने ऊंट की पीठ की गादी हटाई तो वहां एक थैली में हीरे मिले।
व्यापारी समझ गया कि ये हीरे ऊंट के उस मालिक के हैं, जिससे ऊंट खरीदा है। नौकर ने कहा, 'मालिक हमें तो ऊंट के साथ हीरे के रूप में खजाना भी मिल गया है।'
व्यापारी ने उससे से कहा, 'हमने तो सिर्फ ऊंट खरीदा है, हीरे नहीं। ये थैली ऊंट बेचने वाले को वापस करनी होगी।'
वह व्यापारी ऊंट बेचने वाले के पास पहुंच गया और थैली लौटा दी। ऊंट के व्यापारी ने कहा, 'आप अद्भुत व्यक्ति हैं। ये कीमती हीरे हैं, मैं रखकर भूल गया था। आपकी नीयत एकदम साफ है। आप इसमें से एक हीरा रख लीजिए।'
ऊंट खरीदने वाले व्यापारी ने कहा, 'मुझे आपसे कोई भेंट नहीं चाहिए। मैं किसी भेंट के लिए ये थैली आपको नहीं दी है। मेरा कर्तव्य था, मैंने आपको ये थैली दे दी।'
हीरों के मालिक ने बहुत कहा, लेकिन उसने हीरा लेने से मना कर दिया। जब उसने बार-बार हीरा रखने की बात कही तो ऊंट खरीदने वाले ने कहा, 'मैंने पहले से ही दो हीरे रख लिए हैं।'
ये बात सुनते ही हीरों के मालिक को गुस्सा आ गया। उसने कहा, 'मैं तो आपको ईमानदार समझ रहा था।' उसे मालूम था कि थैली में 50 हीरे हैं, उसने अपने हीरे गिने तो उसमें पूरे पचास हीरे ही थे।
हीरों के मालिक ने कहा, 'थैली में तो पूरे हीरे हैं आप किन दो हीरों की बात कर रहे हैं।'
ऊंट खरीदने वाले ने कहा, 'ये दो हीरे हैं ईमानदारी और आत्म सम्मान। ये दो हीरे मैंने पहले से बचाकर रखे हैं, इसलिए ये पूरे 50 हीरे आपको वापस मिल गए।'
सीख
विवेकानंद का ये किस्सा शिक्षा दे रहा है कि हमें ईमानदारी और आत्म सम्मान के साथ जीवन जीना चाहिए।
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